पशुओं के प्रति क्रूरता और क्रूरता निवारण अधिनियम

आज संसार में पशुओं का उत्पीडन जिस बुरी तरह से किया जा रहा है उसे देखकर किसी भी भावनाशील का ह्रदय दया से भरकर कराह उठता है। पशुओं पर होने वाला अत्याचार मनुता पर एक कलंक है। समस्त प्राणी-जगत में सबसे श्रेष्ट कहे जाने वाले मनुष्य का पशुओं के साथ क्रूरता करना कहाँ तक जायज़ है। साधारण-सी बात है कि संसार में रहने वाले सारे प्राणियों को उस एक ही परमिपता परमेश्वर ने जन्म दिया है। इस नाते वे सब आपस मैं भाई-बहन ही है, बुद्धि, विवेक तथा अधिकारों की दृष्टि से मनुष्य उन सबमे में बड़ा है और समस्त अन्य प्राणी उसके छोटे भाई-बहन है । बड़े तथा बुद्धिमान होने के कारण मनुष्य का धर्म है कि वह अपने छोटे जीव-जन्तुओ पर दया करे, उन्हें कष्ट से बचाए, पाले और रक्षा करे। किन्तु खेद है, कि बड़े भाई का कर्त्तव्य निभाने के बजाय मनुष्य उनसे क्रूरता का व्यवहार करता है। समता, दया एवं करुना के आधार पर ‘वसुधैव कुटुकम्’ का महान् सिद्धांत सनातन धर्मं समेत सभी धर्मो की आधारिशला है। यदि धर्म से दया तथा करूणा का निकाल दिया जाये तो वह एक महान् धर्म न रहकर न जाने कौन-सा रूप धारण कर ले। संसार के सारे धर्मो में जीवो पर दया करने का निर्देश दिया गया है। जब तक मनुष्य जीवो के लिए दया, और सनानुभुति नहीं रखेगा, भौतिक विकास तो हो संभव है लेकिन वास्तविक सुख-शांति नहीं मिल सकती । मनुष्य पशु पर कितना और किस – किस प्रकार से अत्याचार और उत्पीड़न करता है, इसको आये दिन सामान्य जीवन मैं देखा जा सकता है। और भी दुःख एवं खेद की बात है कि मनुष्य का यह अत्याचार उन्ही जीव-जन्तुओ पर चल रहा है जो उसके लिये उपयोगी, सेवक तथा सुख-दुःख के साथी तथा बच्चो की तरह ही भोले, निरीह और आज्ञाकारी है ।
गाय, बैल, भेंस, भेंसा, घोड़ा, गधा, बकरी आदि मनुष्य के युग-युग के साथी और बहुत ही उपयोगी साधन है । किन्तु मनुष्य उन पर कितना अत्याचार करता है, यह किसी से छिपा नहीं है। गाय पालते है , उससे दूध लेते है और बूढ़ी अथवा दूध न देने की स्थिति में या तो मारकर घर से निकाल देते है अथवा कसाई के हाथ कटने को बेच देते है। इतना ही नहीं, उसके जरा भी गलती करने पर अथवा कोई अप्रिय अभिव्यक्ति करने पर उस पर यह सोचे बिना डंडे बरसाने लगते है कि आखिर यह है तो एक पशु ही, गलती कर सकती है। अपने खेत पर आ जाने पर तो लोग दूसरों के जानवरों को इस बुरी तरह मारते है कि बेचारे कभी-कभी तो चीखकर गिर तक पड़ते है । बैल-भसों पर तो मनुष्य का अत्याचार देखकर यही लगता है कि यह बेचारे पशु अपने पूर्व जन्म के पापों का दंड पा रहे है और इनका वाहक मनुष्य न होकर मनुष्य रूप में यमराज है जो कि असहनीय यंत्रणा दे रहा है। गर्मी की दोपहरी में गाड़ी-ठेले पर तीस-तीस मन बोझ ढोने अथवा हल में चलने वाले अधिकाँश बैल-भैसों के कंधे घायल रहते है, वे जुआ अथवा हल की रगड़ से कट जाते है किन्तु उनका क्रूर स्वामी उसकी कोई परवाह न कर उन्ही घायल बैल-भैसों कों पर जुआ रख देते है, जिससे उस पीड़ित पशु के कंधो में स्थाई घाव हो जाता है जो फिर आजीवन अच्छा नहीं होता
भारतीय संविधान के अनुच्छे 51(A) के मुताबिक हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है।  पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम अधिनियम (Prevention of Cruelty to Animals Act) भारतीय संसद द्वारा १९६० में पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य पशुओं को दी जाने वाली अनावश्यक पीड़ा और कष्ट को रोकना है। पशुओं के साथ निर्दयता का अर्थ है मानव के अतिरिक्त अन्य पशुओं को नुकसान पहुँचाना या कष्ट देना। कुछ लोग इस परिभाषा को और अधिक व्यापक कर देते हैं और उनका मत है कि किसी विशिष्त लाभ के लिये पशुओं का नुकसान (जैसे वध करना) पशुओं के साथ निर्दयता के अन्तर्गत आता है।

धारा 11 – (1) यदि कोई व्यक्ति

  • किसी पशु को अनावश्यक पीड़ा या यातना पहुंचाने हेतु मारता है, लात लगाता है, अधिक सवारी करता या अधिक हांकता है, अधिक बोझा लादता है, दुःखी, क्लेशित करता है या अन्यथा ऐसा व्यवहार करता या करवाता है या स्वामी होने के नाते ऐसा करने की अनुमति देता है।
  • उम्र या किसी रोग या शारीरिक अशक्तता, घाव, सड़न या अन्य कारण से ऐसे कार्य में लेने में अशक्त पशु को नियोजित करना, श्रम करवाना या अन्य प्रयोजन करवाना या पशु के स्वामी होने के नाते ऐसे किसी पशु को कार्य में लेने की अनुमति देता है ।
  • किसी पशु को जानबूझ कर और अनुचित प्रकार से कोई हानिप्रद मादक द्रव्य या हानिप्रद पदार्थ देता है या किसी पशु को जानबूझकर और अनुचित प्रकार से मादक द्रव्य या हानिप्रद पदार्थ देने का प्रयत्न करता या कारित करता है।
  • किसी पशु को अनावश्यक पीड़ा या यातना हो इस तरीके या स्थिति में ले जाता है या वाहन में या वाहन पर या अन्यथा परिवहन करता है।
  • किसी पशु को ऐसे पिंजरे या अन्य पात्र में रखेगा या परिरुध्र करेगा, जिसकी ऊंचाई, लम्बाई और चौड़ाई इतनी पर्याप्त न हो पशु को उसम हिल -डुल सकने का उचित स्थान न हो सके । किसी पशु को अनुचित रूप से छोटी या अनुचित रूप से भारी किसी जंजीर या रस्सी में किसी अनुचित अवधि तक के लिए बांधकर रखना ।
  • स्वामी होते हुए, किसी ऐसे कुत्ते को, जो अभ्यासत: जंजीर में बंधा रहता है या बंद रखा जाता है, उचित रूप से व्यायाम करने या करवाने की उपेक्षा करना।
  • किसी पशु का स्वामी होते हुए उस पशु को पर्याप्त भोजन, पानी और शरण दे पाने में असफल होता है ।
  • बिना औचित्यपूर्ण कारण के किसी पशु को ऐसी परिस्थितियों में छोड़ देता है कि उसे भूख-प्यास के कारण पीड़ा होने की संभावना हो ।
  • किसी पशु को, उसका स्वामी जानबूझ कर किसी गलीकूचे में आवारा घूमने की छूट देता है जबकि वह पशु छूत या संक्रामक रोग से पीड़ित हो या बिना औचित्यपूर्ण कारण के, रोगी या अशक्त पशु, जिसका वह स्वामी है, को गलीकूचे में मर जाने देता है ।
  • किसी ऐसे पशु को बिक्री के लिए प्रस्तुत  करेगा, या बिना किसी उचित  कारण के अपने कब्जे म रखेगा, जो अंगिवच्छेद, भुखमरी, प्यास, अतिभरण या अन्य दुव्यर्वहार के कारण पीड़ाग्रस्त हो ।
  • किसी पशु का अंगिवच् छेद करेगा या किसी पशु को (जिसके अन्तगर्त आवारा कुत्ते भी है) हृदय में स्टिकनीन अन्तःक्षेपण की पधति का उपयोग करके या किसी अनावश्यक क्रूर ढंग से मार डालना ।
  • केवल मनोरंजन करने के उदेश्य से
  • (i) किसी पशु को ऐसी रीति से परिरुध्य करेगा या कराएगा (जिसके अन्तगर्त किसी पशु का किसी अन्य घर् या अन्य पशु वन में चारे के रूप म बांधा जाना भी है) कि वह किसी अन्य पशु का शिकार बन जाए ; अथवा
  • (ii) किसी पशु को किसी अन्य पशु के साथ लड़ने के लिए या उसे सताने के लिए उद्दीप करना।
  • पशु की लड़ाई के लिए या किसी पशु को सताने के प्रयोजनार्थ किसी स्थान को सुव्यविस्थत करेगा, बनाए रखेगा उसका उपयोग करेगा, या उसके प्रबंध के लिए कोई कार्य करेगा या किसी स्थान को इस प्रकार उपयोग में लाने देगा या तदर्थ प्रस्ताव करेगा, या ऐसे किसी प्रयोजन के लिए रखे गए या उपयोग में लाए गए किसी स्थान में किसी अन्य व्यक्ति के प्रवेश के लिए धन प्राप्त करेगा ।
  • गोली चलाने या निशानेबाजी के किसी मैच या प्रतितयोगता को, जहां पशु को बंधुआ हालत से इसीलिए छोड़ दिया जाता है कि उन पर गोली चलाई जाए या उन्हें निशाना बनाया जाए, बढ़ावा देना या उसमें भाग लेगा ।

उपरोक्त परिस्थितियो में यदि उसका प्रथम अपराध हो तो दस रुपये का न्यूनतम एवं पचास रुपये तक के अर्थदण्ड और दूसरे या अगले अपराध की स्थिति में, जो पूर्व के अपराध के तीन वर्षों में ही हुआ हो तो पच्चीस रुपये का न्यूनतम और एक सौ रुपये तक के अर्थदण्ड या तीन माह के कारावास या दोनों से दंडित किया जायेगा।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों  के लिए किसी स्वामी के बारे में यह तब समझा जाएगा कि उसने अपराध किया है जब वह ऐसे अपराध के निवारण के लिए समुचित देख-रेख और पयर्वेक्षण करने में असफल रहा हो : परन्तु जहां स्वामी केवल इसी कारण क्रूरता होने देने के लिए दोषी सिद्ध किया जाता है कि वह ऐसी देख-रेख और पयर्वेक्षण करने में असफल रहा है वहां वह जुमार्ने के विकल्प के बिना कारावास का दायी नहीं होगा।
(3) इस धारा के प्रावधान निम्नवर्णित कृत्यों पर लागू नहीं होंगे : (ए) निर्धारित प्रक्रिया से पशुओं के सींग काटना, बन्ध्याकरण करना, चिन्हीकरण तथा नकेल डालना।
(बी) आवारा कुत्तों को निर्धारित रीति से निर्धारित स्थानों (प्राणहांर कछो) में नष्ट किया जाना।
(सी) मनुष्यों के भोजन के लिए किसी पशु के विनष्टीकरण अथवा विनष्टीकरण के लिए तैयारी के दौरान कोई ऐसा कृत्य करना अथवा न करना, यदि विनष्टीकरण के लिए तैयारी से उस पशु को अनावश्यक पीड़ा व कष्ट न होता हो।
(दी) तत्समय प्रवत किसी विधि के प्राधिकार के अधीन किसी पशु का उन्मूलन करना या उसे नष्ट करना ।
(इ) कोई विषय, जो अध्याय 4 में वर्णित है ।
धारा 12 – फूका या डूम देव प्रक्रिया करने पर दंड यदि कोई व्यक्ति किसी गाय या अन्य दुधारू पशु पर ऐसी शल्य-क्रिया करे जिसे ‘फूका‘ या ‘डूम देव‘ कहा जाता है या अन्य प्रक्रिया जिसमें किसी भी पदार्थ का इंजेक्शन लगाए जिसका उद्देश्य अधिक दूध दुहना हो परन्तु जो पशु के स्वास्थ्य के लिए घातक हो या कोई व्यक्ति ऐसी प्रक्रिया अपने कब्जे या नियंत्रण के पशु पर करने की अनुमति देता हो तो उसे ऐसे अर्थदण्ड से दंडित किया जाएगा जो एक हजार रुपए तक हो या ऐसे कारावास से जो दो वर्षों तक हो सकेगा या दोनों से दंडित किया जा सकेगा और जिस पशुओं पर ऐसी प्रक्रिया की जाए वह सरकार के हित में जप्त कर लिया जायेगा।
धारा 28 – धर्म द्वारा निर्धारित ढंग से कत्ल संबंधी छूट किसी समुदाय के धर्म द्वारा वांछित रीति से किसी पशुओं का कत्ल इस अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 29 – न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध व्यक्ति को पशु के स्वामित्य से वंचित करना।
(1) यदि किसी पशु का स्वामी इस अधिनियम के अंतर्गत किसी अपराध के लिए दोषी पाया जाए, तो उसे उस दोष सिद्धि पर, यदि न्यायालय उचित समझे तो, अन्य सजा के अतिरिक्त, जिस पशु के संबंध में अपराधकिया गया उसके लिए, एक आदेश पारित कर सकता है कि वह पशु सरकार के पक्ष में जप्त माना जाएगा और साथ ही उस पशु के व्ययन ;क्पेचवेंसद्ध के लिए परिस्थितियों के अनुसार जैसा उपयुक्त समझे, आदेश दे सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अंतर्गत कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा जब तक कि साक्ष्य द्वारा यह नहीं दिखे कि इस अधिनियम में पूर्व में दोष सिद्धि हुई थी या स्वामी के चरित्र के बारे में या अन्यथा पशु के साथ व्यवहार के बारे में, कि यदि पशु उसके स्वामी के साथ रखा गया तो यह संभावना है कि उसे आगे भी क्रूरता का सामना करना पड़ेगा।
(3) उपधारा (1) में किए प्रावधान को आंच पहुंचाए बिना, न्यायालय यह भी आदेश दे सकेगा कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध व्यक्ति या स्थायी रूप से या आदेश में तय की गई अवधि के लिए किसी भी प्रकार के किसी पशु को धारित करने से वंचित रहेगा या न्यायालय जैसा उचित समझे, आदेश में निर्दिष्ट किसी प्रजाति या प्रकार का कोई पशु धारित नहीं करेगा।
(4) उपधारा (3) में कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा, जब तक कि निम्नांकित स्थिति न हो :- (क) उपधारा (3) के अंतर्गत तब तक कोई आदेश न दिया जाए जब तक कि पिछली किसी दोष सिद्धि के साक्ष्य से यह ज्ञात न हो जाए कि उस व्यक्ति का चरित्र कैसा था, उस पशु के साथ उसका व्यवहार कैसा था जिसके लिए उसे दोषी पाया गया है और यदि यह पशु इस व्यक्ति की अभिरक्षा में रहता तो उसके प्रति क्रूरता किए जाने की संभावना थी।
(ख) जिस शिकायत के आधार पर उसे दोषी पाया गया था, उसमें यह कहा गया है कि अभियुक्त की दोष सिद्धि के बारे में शिकायत की यह मंशा थी और उसमें पूर्वोक्तानुसार कोई आदेश पारित करने का अनुरोध किया गया था।
(ग) जिस अपराध के लिए उसे दोषी पाया गया था ऐसे किसी क्षेत्र में किया गया था जिसमें तत्समय प्रभावी कानून के अनुसार उस पशु को रखने के लिए कोई लाइसेन्स आवश्यक था, जिस पशु के लिए उसे दोषी पाया गया था।
5. तत्समय प्रभावी किसी कानून में इसके विपरीत किसी प्रावधान के होने के बावजूद ऐसा कोई व्यक्ति जिसके विषय में उपधारा (3) के अंतर्गत कोई आदेश दिया गया है उसे कोई अधिकार नहीं है कि वह उस आदेश के विपरीत किसी पशु को अभिरक्षा में रखे और यदि वह किसी आदेश के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे एक सौ रुपये तक के जुर्माने या तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास या एक साथ दोनों दण्ड दिए जाएंगे।
धारा 30 – कुछ प्रकरणों में दोष संबंधी उपधारणा यदि किसी व्यक्ति पर धारा 11 की उपधारा (1)(एल) के प्रावधान का उल्लंघन कर बकरी, गाय उसकी संतति के कत्ल के अपराधों का आरोप हो और जिस समय आरोपित अपराध किया गया, यह सिद्ध हो कि उस समय में उसे आधिपत्य में इस धारा में संदर्भित पशु का चमड़ा पाया जाए तो, जब तक विपरीत सिद्ध न हो, यह उपधारणा की जाएगी कि वह पशु क्रूर तरीके से कत्ल किया गया।
धारा 31 – अपराधों की प्रसंज्ञेयता दंड प्रक्रिया संहिता 1898 में विपरीत कथन के रहते हुए भी, धारा 11 की उपधारा (1)(एल) या (एन) या (ओ) या धारा 12 के अंतर्गत दंडनीय अपराध, उस संहिता में प्रसंज्ञेय अपराध माने जायेंगे।
धारा 32 – तलाशी और जप्ती की शक्तियां
(1) यदि उप-निरीक्षक से अन्यून कोई पुलिस अधिकारी या इस हेतु राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति को यह विश्वास होने का कारण हो कि धारा 30 में संदर्भित पशु के संदर्भ में, धारा 11 की उपधारा (1)(एल) के संबंध में कोई अपराध हुआ है या किसी व्यक्ति के आधिपत्य में, ऐसे पशु का चमड़ा, उससे जुड़े हुए सिर के चमड़े के किसी भाग सहित पाया जाए तो वह उस स्थान में प्रवेश कर, तलाशी कर सकेगा या ऐसे स्थान जहां पर ऐसा चमड़ा पाया जा सकता है उसमें प्रवेश और तलाशी कर सकेगा और ऐसे अपराध की कारिति में उपयोग उद्देश्य से किसी वस्तु, पदार्थ या चमड़े को जप्त कर सकेगा।
(2) यदि उप-निरीक्षक से अन्यून कोई पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति को विश्वास करने के कारण हो कि उसके क्षेत्राधिकार में किसी पशु पर धारा 12 में संदर्भित ‘फूका‘ या ‘डूम देव‘ या अन्य किसी प्रकार की शल्य-क्रिया अभी-अभी हुई या होने की संभावना है तो वह ऐसे किसी भी स्थान में, जहां ऐसे पशु के होने की संभावना हो, प्रवेश कर सकता है, पशु को जप्त कर सकता है और जिस क्षेत्र में पशु जप्त किया गया उसके प्रभारी पशुचिकित्सक अधिकारी के समक्ष परीक्षण के लिए प्रस्तुत कर सकता है।
धारा 33 – तलाशी वारंट (1) यदि प्रथम या द्वितीय श्रेणी प्रेसीडेंसी दंडाधिकारी या पुलिस आयुक्त या जिला-पुलिस-अधीक्षक को लिखित सूचना मिलने पर और जैसी वह उचित समझे जांच के बाद यह विश्वास करने का कारण हो कि इस अधिनियम के अंतर्गत किसी स्थान पर कोई अपराध होने जा रहा है, या हो रहा है या हो चुका है, तब या तो वह स्वयं प्रवेश कर सकता है और तलाशी कर सकता है या उसके द्वारा जारी वारंट से, उप-निरीक्षक से अन्यून किसी पुलिस अधिकारी को प्रवेश और तलाशी हेतु अधिकृत कर सकता है। (2) इस अधिनियम के अंतर्गत तलाशियों के लिए, दंड प्रक्रिया संहिता 1898 के प्रावधान, जहां तक लागू करना संभव हों, लागू होंगे।
धारा 35 – पशुओं का उपचार और देखभाल (1) राज्य सरकार, सामान्य या विशेष आदेश से जिन पशुओं के संबंध में अपराध हुए हों, उनके उपचार और देखरेख के लिए उपचार-गृह स्थापित कर सकती है और दंडाधिकारी के समक्ष प्रस्तुति लंबित रहते उन उपचार गृहों में पशुओं को रखे रहने के लिए अधिकृत कर सकती है।
धारा 36 – अभियोजनों की परिसीमा अपराध घटित होने के तीन माह समाप्त होने के बाद उसका अभियोजन दर्ज नहीं किया जाएगा।

यातनाग्रस्त पशु को नष्ट करना

  • जहां कि किसी पशु का स्वामी धारा 11 के अधीन किसी अपराध के लिए दोषी  किया जाता है वहां, यदि न्यायालय का समाधान हो गया है कि पशु को जीवित रखना क्रूरता होगी तो, न्यायालय के लिए यह वैध होगा कि वह यह निर्देश दे कि उस पशु को नष्ट कर दिया जाए और उस प्रयोजन के लिए उसे किसी उपयुक्त व्यक्ति को सौप दिया जाए, तथा जिस व्यक्ति को वह पशु इस प्रकार सौंपा जाए वह, उसे अनावश्यक यातना दिए बिना, अपनी उपिस्थित में यथासंभव शीघ नष्ट कर देगा या करवा देगा तथा न्यायालय यह आदेश दे सकेगा कि उस पशु को नष्ट करने में जो भी उचित व्यय हुआ है वह उसके स्वामी से वैसे ही वसूल कर लिया जाए मानो वह जुमार्ना हो : परन्तु यदि स्वामी उसके लिए अपनी अनुमित नहीं देता है तो इस धारा के अधीन कोई भी आदेश, उस छेत्र के भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी के साछ के बिना, नही दिया जाएगा ।
  •  जब किसी मजिस्टेट, पुलिस आयुक्त या जिला पुलिस अधीक्षक के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी पशु के संबंध में धारा 11 के अधीन कोई अपराध किया गया है तो वह उस पशु के तुरन्त नष्ट किए जाने का निर्देश दे सकेगा यदि उसे जीवित रखना उसकी राय में क्रूरता हो ।
  •  कांस्टेबल की पंक्ति से ऊपर का कोई पुलिस अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा इस निमित प्राधिकृत कोई व्यक्ति , जो किसी पशु को इतना रुग्ण या इतने गंभीर रूप से छतिग्रस्त या ऐसी शारीरिक स्थति में पाता है कि उसकी राय म उसे क्रूरता के बिना हटाया नहीं जा सकता है तो वह, यदि स्वामी अनुपिस्थत है या उस पशु को नष्ट करने के लिए अपनी सहमित देने से इंकार करता है तो, तुरन्त उस छेत्र के भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी को, जिसमे वह पशु पाया गया हो, आहूत कर सकेगा और यदि भारसाधक पशु चिकित्सा अधिकारी यह प्रमाणित करता है कि वह पशु घातक रूप से छतिग्रस्त है या इतने गंभीर रूप से छतिग्रस्त है या ऐसी शारीरिक स्थिति में है कि उसे जीवित रखना क्रूरतापूर्ण होगा तो, यथास्थिति , वह पुलिस अधिकारी या प्राधिकृत कोई व्यक्ति, मजिस्टेट के आदेश प्राप्त  करने के पश्चात्, उस छतिग्रस्त पशु को ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, नष्ट कर सकेगा या नष्ट करा सकेगा ।
  • पशुओं को नष्ट करने के संबंध में मजिस्टेट के किसी आदेश के खिलाफ कोई भी अपील नहीं होगी ।

महात्मा गांधी की दृष्टि में गौ रक्षा का महत्व

महात्मा गांधी की दृष्टि में गौ रक्षा का महत्व

गाय भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। हमारे देश का संपूर्ण राष्टजीवन गाय पर आश्रित है। गौमाता सुखी होने से राष्ट सुखी होगा और गौ माता दुखी होने से राष्ट के प्रति विपत्तियां आयेंगी, ऐसा माना जा सकता है।
गाय को आज व्यावहारिक उपयोगिता के पैमाने पर मापा जा रहा है किंतु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि आधुनिक विज्ञान की सीमाएं हैं। आज का विज्ञान गाय की सूक्ष्म व परमोत्कृष्ट उपयोगिता के विषय में सोच भी नहीं सकता। भारतीय साधु, संत तथा मनीषियों को अपनी साधना के बल पर गाय की इन सूक्ष्म उपयोगिताओं के बारे में ज्ञान प्राप्त किया था। इसलिए ही उन्होंने गाय को गौमाता कहा था। भारतीय शास्त्रों में गौ महात्म्य के विषय में अनेक कथाएं मिलती हैं।
गाय का सांस्कृतिक व आर्थिक महत्व है। संक्षेप में कहा जाए तो भारतीय ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का आधार गाय ही है। गाय के बिना भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कल्पना तक नहीं की जा सकती।
महात्मा गांधी एक मनीषी थे। वह भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे। उनका स्पष्ट मत था कि भारत को पश्चिम का अनुकरण नहीं करना चाहिए। भारत को अपनी संस्कृति. विरासत व मूल्यों के आधार पर विकास की राह पर आगे बढना चाहिए। गांधी जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिन्द स्वराज में लिखा है – अंग्रेजों के विकास माडल को अपनाने से भारत, भारत नहीं रह जाएगा और भारत सच्चा इंगलिस्तान बन जाएगा।
गांधी जी का यह स्पष्ट मानना था कि देश में ग्राम आधारित विकास होने की आवश्यकता है। ग्राम आधारित विकास के लिए भारत जैसे देश में गाय का कितना महत्व है, उनको इस बात का अंदाजा था। गांधी जी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व कहा है। गांधी जी कहते थे कि जो हिन्दू गौ रक्षा के लिए जितना अधिक तत्पर है वह उतना ही श्रेष्ठ हिन्दू है। गौरक्षा के लिए गांधी जी किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे।
महात्मा गांधी ने गाय को अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप बताया है। उनका मानना था कि गौ रक्षा का वास्तविक अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। उन्होंने 1921 में यंग इंडिया पत्रिका में लिखा “ गाय करुणा का काव्य है। यह सौम्य पशु मूर्तिमान करुणा है। वह करोड़ों भारतीयों की मां है। गौ रक्षा का अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। प्राचीन ऋषि ने, वह जो भी रहा हो, आरंभ गाय से किया। सृष्टि के निम्नतम प्राणियों की रक्षा का प्रश्न और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ईश्वर ने उन्हें वाणी नहीं दी है। ” ( यंग इंडिया, 6-11-1921)
गांधी जी ने अत्यंत मार्मिक शब्दों में लिखा – “ गाय अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप है। वह प्राणियों में सबसे समर्थ अर्थात मनुष्यों के हाथों न्याय पाने के वास्ते सभी अवमानवीय जीवों की ओर से हमें गुहार करती है। वह अपनी आंखों की भाषा में हमसे यह कहती प्रतीत होती है : ईश्वर ने तुम्हें हमारा स्वामी इसलिए नहीं बनाया है कि तुम हमें मार डालो, हमारा मांस खाओ अथवा किसी अन्य प्रकार से हमारे साथ दुर्वव्यहार करो, बल्कि इसलिए बनाया है कि तुम हमारे मित्र तथा संरक्षक बन कर रहो।” ( यंग इंडिया, 26.06.1924)
महात्मा गांधी गौ माता को जन्मदात्री मां से भी श्रेष्ठ मानते थे। गौ माता निस्वार्थ भाव से पूरे विश्व की सेवा करती है। इसके बदले में वह कुछ भी नहीं मांगती। केवल जिंदा रहने तक ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी वह हमारे काम में आती है। अगर निस्वार्थ भाव से सेवा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहीं देखने को मिलता है तो वह गौ माता है।
गांधी जी लिखते हैं – “ गोमाता जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है। हमारी माता हमें दो वर्ष दुग्धपान कराती है और यह आशा करती है कि हम बडे होकर उसकी सेवा करेंगे। गाय हमसे चारे और दाने के अलावा किसी और चीज की आशा नहीं करती। हमारी मां प्राय: रुग्ण हो जाती है और हमसे सेवा करने की अपेक्षा करती है। गोमाता शायद ही कभी बीमार पडती है। गोमाता हमारी सेवा आजीवन ही नहीं करती, अपितु अपनी मृत्यु के उपरांत भी करती है। अपनी मां की मृत्यु होने पर हमें दफनाने या उसका दाह संस्कार करने पर भी धनराशि व्यय करनी पडती है। गोमाता मर जाने पर भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होती है जितनी अपने जीवन काल में थी। हम उसके शरीर के हर अंग – मांस, अस्थियां. आंतें, सींग और चर्म का इस्तमाल कर सकते हैं। ये बात हमें जन्म देने वाली मां की निंदा के विचार से नहीं कह रहा हूं बल्कि यह दिखाने के लिए कह रहा हूं कि मैं गाय की पूजा क्यों करता हूं। ”( हरिजन , 15.09-1940)
गांधीजी गौ रक्षा के लिए संपूर्ण विश्व का मुकाबला करने के लिए तैयार थे। 1925 में यंग इंडिया में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है – “ मैं गाय की पूजा करता हूं और उसकी पूजा का समर्थन करने के लिए दुनिया का मुकाबला करने को तैयार हूं। ” – (यंग इंडिया, 1-1-1925)
गांधीजी का मानना था कि गौ हत्या का कलंक सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि पूरे देश से बंद होना चाहिए। इसके लिए भारत से यह कार्य शुरु हो, यह वह चाहते थे। उन्होंने लिखा है – “ मेरी आकांक्षा है कि गौ रक्षा के सिद्धांत की मान्यता संपूर्ण विश्व में हो। पर इसके लिए यह आवश्यक है पहले भारत में गौवंश की दुर्गति समाप्त हो और उसे उचित स्थान मिले ” – (यंग इंडिया, 29-1-1925)
आर्थिक दृष्टि से लाभदायक न होने वाले पशुओं की हत्या की जो परंपरा पश्चिम में विकसित हुई है गांधी जी उसकी निंदा करते थे। गांधीजी उसे ‘हृदयहीन व्यवस्था’ कहते थे। उन्होंने बार-बार कहा कि ऐसी व्यवस्था का भारत में कोई स्थान नहीं है। इस बारे में उन्होंने एक बार हरिजन पत्रिका में लिखा। गांधीजी की शब्दों में – “ जहां तक गौरक्षा की शुद्ध आर्थिक आवश्यकता का प्रश्न है, यदि इस पर केवल इसी दृष्टि से विचार किया जाए तो इसका हल आसान है। तब तो बिना कोई विचार किये उन सभी पशुओं को मार देना चाहिए जिनका दूध सूख गया है या जिन पर आने वाले खर्च की तुलना में उनसे मिलने वाले दूध की कीमत कम है या जो बूढे और नाकारा हो गए हैं। लेकिन इस हृदयहीन व्यवस्था के लिए भारत में कोई स्थान नहीं है , यद्यपि विरोधाभासों की इस भूमि के निवासी वस्तुत: अनेक हृदयहीन कृत्यों के दोषी हैं। ” (हरिजन ,31.08. 1947)
महात्मा गांधी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व कहा है। गौ के महात्म्य के बारे में उन्होंने लिखा है – हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व गोरक्षा है। मैं गोरक्षा को मानव विकास की सबसे अदभुत घटना मानता हूं। यह मानव का उदात्तीकरण करती है। मेरी दृष्टि में गाय का अर्थ समस्त अवमानवीय जगत है। गाय के माध्यम से मनुष्य समस्त जीवजगत के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करता है। गाय को इसके लिए क्यों चुना गया, इसका कारण स्पष्ट है। भारत में गाय मनुष्य की सबसे अच्छी साथिन थी। उसे कामधेनु कहा गया। वह केवल दूध ही नहीं देती थी, बल्कि उसी के बदौलत कृषि संभव हो पाई। ” – (यंग इंड़िया, 6.10.1921)
महात्मा गांधी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म के संरक्षण के साथ जोडा है। उनके शब्दों में – गो रक्षा विश्व को हिन्दू धर्म की देन है। हिन्दू धर्म तब तक जीवित रहेगा जब तक गोरक्षक हिन्दू मौजूद है। ”- (यंग इंड़िया, 6.10.1921)
अच्छे हिन्दुओं को हम कैसे परखेंगे। क्या उनके मस्तक से, तिलक से या मंत्रोच्चार से। गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि गौ रक्षा की योग्यता ही हिन्दू होने का आधार है। गांधी जी के शब्दों में – “ हिन्दुओं की परख उनके तिलक, मंत्रों के शुद्ध उच्चारण, तीर्थयात्राओं तथा जात -पात के नियमों के अत्यौपचारिक पालन से नहीं की जाएगी, बल्कि गाय की रक्षा करने की उनकी योग्यता के आधार पर की जाएगी। ” (यंग इंडिया . 6.10.1921)
गांधी जी के उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि बापू गौ रक्षा को कितना महत्वपूर्ण मानते थे। लेकिन इसे त्रासदी ही कहना चाहिए कि गांधी के देश में गौ हत्या धडल्ले से चल रही है। महात्मा गांधी के विचारों की हत्या कर दी गई है। आवश्यकता इस बात की है कि गांधी जी के विचारों के आधार पर, भारतीय शाश्वत संस्कृति व परंपराओं के आधार पर भारतीय व्यवस्था को स्थापित किया जाए और गौ माता की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं, तभी गांधीजी के सपनों का राम राज्य स्थापित हो पाएगा।

परम पूज्य द्वाराचार्य मलुकपीठाधीश्वर श्रीराजेन्द्रदासजी महाराज की वाणी गौ महिमा

पूज्यश्री महाराजजी ने बड़ी सुन्दर बात कही। एक सूत्र में ही सब कुछ कह दिया। एक तो यह कहा कि गाय के प्रति जिसकी भक्ति नहीं, श्रद्धा नहीं है, निष्ठा नहीं है, वह कभी भी गोविन्द का भक्त नहीं हो सकता। जो सच्चे अर्थ में गोविन्द का भक्त होगा वह गोभक्त अवश्य होगा। क्योंकि गोविन्द तो इष्ट है और गाय अति इष्ट है। इष्ट की इष्ट है ना गाय, इसलिये। इष्ट श्रीगोविन्द और गोविन्द की भी इष्ट श्रीगोमाता है। भगवान अनुचर है गाय के। भगवान भी गाय के आगे नहीं चलते पीछे-पीछे चलते हैं। गायें चर करके तृप्त होकर के पवित्र श्रीयमुनाजी के जल को पीकरके जब बैठ जाती हैं तब ठाकुरजी बैठते हैं। तब तक बैठते नहीं, खड़े रहते हैं और इसके बाद ठाकुरजी छाछ आरोगते हैं, प्रसाद पाते हैं और पुनः जब गोचारण करके लौटते हैं तो फिर गोवंश के पीछे-पीछे चलकर आते हैं।
ऐसे, श्रीकृष्ण का भक्त यदि उसकी गाय में श्रद्धा नहीं है, गव्य पदार्थों में श्रद्धा नहीं है, कैसे स्वीकार किया जाय की वह भगवत् भक्त है, संत है अथवा वैष्णव है या आस्तिक है। इतना ही नहीं गाय में श्रद्धा नहीं है तो उसे भारतीय कहलाने का अधिकार नहीं है। हमारे वृन्दावन में एक परम तपस्वी ज्ञानवृद वयोवृद ऋषिकल्प महापुरुष विराजमान थे। जिनके चरणों में बैठकर दास को यत्किन्चित
स्वाध्याय करने का अवसर प्राप्त हुआ। अनन्तश्री सम्पन्न पूज्य पंडित श्रीराजवंशी द्विवेदीजी धर्मसंघ वाले गुरुजी। एक बार दास ने सहज ही गुरुजी से पूछा! गुरुजी अत्यन्त सरल कोई परिभाषा बतायें सनातनधर्मी हिन्दू की। तो गुरुजी हंसने लगे। तो गाय के प्रति श्रद्धा की बात गुरुजी ने नहीं की। गुरुजी ने कहा गोमय और गोमूत्र में जिसकी श्रद्धा हो, गोमय में जिसे दिव्य सुगन्ध का अनुभव होता हो, गोमूत्र में जिसको दिव्य सुगन्धका अनुभव होता हो उसको उसका दर्शन करके चित्त में घृणा
उत्पन्न नहीं होती हो, वही हिन्दू है, वही सनातनधर्मी है। अगर गोबर, गोमूत्र को देखकर श्रद्धा उत्पन्न नहीं होती, मन सात्विक नहीं होता तो गुरुजी कहते थे कहीं न कहीं से मलेच्छत्व उसमें आ गया है,  वर्णसंकरी उसमे आ गया है।

गौसेवा संकल्प

– आइए मिलकर हम गोसेवा संकल्प लें –

गोसेवा संकल्प

मैं …(आप अपना नाम लें)… गोरक्षार्थ – गोहितार्थ आज से निम्नलिखित गोसेवा संकल्प लेता हूँ।

  1. नित्य नियम मे इष्ट उपासना के अंतर्गत गोरक्षार्थ नियमित प्रार्थना करूंगा।
  2. निराश्रित एवं असहाय गोवंश के सम्पोषणार्थ नियमित गोग्रास प्रदान करूंगा।
  3. दैनिक उपासना, आहार एवं औषधियों मे यथाप्राप्त गोउत्पादों का ही प्रयोग करूंगा।
  4. गोवंश का अहित हो ऐसी वस्तुओं और व्यक्तियों से व्यवहार नहीं करूंगा।
  5. जो जन प्रतिनिधि एवं राजनीतिक दल गौवंश को संरक्षणता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हो उन्हीं को अपना विस्वास मत दूँगा।

उपरोक्त पांचों संकल्प श्री कृष्ण भगवान और उनकी प्रिय गौमाता की प्रसन्नता हेतु लेने पर हमारे मनों मे दृढ़ता आएगी। भगवान कृष्ण हमें हमारा गोसेवा संकल्प पूरा करने की शक्ति दें ऐसी नियमित प्रार्थना करनी चाहिए।
आपके द्वारा लिया गया गोसेवा संकल्प ही हमारे उद्देश्यों के प्रति आपकी बहुत बड़ी सहायता है।
आपका बहुत धन्यवाद।

गाय गौ –रक्षा का वैज्ञानिक पक्ष

गाय गौ –रक्षा का वैज्ञानिक पक्ष
यदि सिर्फ ऐतिहासिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक पक्ष भी देखा जाए तो ‘गाय’ भारत ही नहीं दुनिया के लिए बहुत उपयोगी जीव सिद्ध होती है।
आज मै ‘गाय’ के इतिहास पर थोडा प्रकाश डालना चाहता हूँ तथा ‘गाय’ के विषय में कुछ तथ्यों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ |
‘गाय’ – यह एक ऐसा शब्द है जिससे भारत के कई लोगों की आस्था जुडी हुई है | सदियों से इस भूमि पर गाय का सम्मान तथा रक्षा होते आये हैं | यह इस हद तक भारत के लोगों के मन में बसी हुई है की मुगलों तक को कई बार अपना राज्य बचाने के लिए ‘गौ-हत्या’ प्रतिबंधित करनी पड़ी थी | यही नहीं अंग्रेजों के समय भी प्रथम क्रांति गाय के प्रश्न पर ही हुई थी | पर बाद में अंग्रेजों ने इसी गाय को इस कदर अपने पाठ्यक्रम में बदनाम किया की आज कई भारतीय ‘गाय’ की हत्या तथा इसे भोजन के रूप में ग्रहण करने की वकालत करते हैं |  कुछ महीनो पहले ही केरला में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सरेआम सड़क पर गाय को काटकर तथा उसका मॉस पकाकर लोगों में बांटा था  | इसके अगले ही दिन आई.आई.टी. मद्रास में ५० छात्रों ने गाय का मॉस खाने की पार्टी आयोजित करी , जिसमे सभी को गौ मॉस परोसा गया | [i] यह इस बात के विरोध में था के भारत सरकार ने गाय को काटने और बेचने पर रोक क्यों लगाईं | कई वामपंथी लोगों का मानना है के यह उनके खाने के मामले में दखल देना है |
अब समझ नहीं आता के जिस देश में कई तरह की जलवायु तथा लाखो तरह के पकवान एवं सब्जियां हर राज्य में होती हों वहां सिर्फ गाय को खाकर ही भूख मिटाने की जिद कहाँ तक जायज़ है, और वो भी तब जब देश की आधे से ज्यादा आबादी गाय को ‘माँ’ और इश्वर का दर्जा देती हो | यह सब एक विशेष प्रकार की नफरत की राजनीति के लिए किया जा रहा है जिसमे वामपंथी हर वो काम करने के लिए खड़े हो जाते हैं जिसमे हिन्दू धर्म का अपमान होता हो , क्योंकि वामपंथी विचारधारा के मूल में ही यह है के ‘धर्म एक अफीम की तरह है’ तथा धर्म को समाप्त कर देना चाहिए | हालाँकि कार्ल मार्क्स ने वहां रिलिजन शब्द का प्रयोग किया था जो असल में धर्म नहीं है मगर हिन्दुस्तान के वामपंथी धर्म और रिलिजन दोनों को एक ही समझ बैठे , शायद यह उनकी राजनीति चमकाने के लिए उन्हे उचित लगा होगा | ‘गाय’ जो हर थोड़े दिन में कहीं ना कहीं से मीडिया के निशाने पर आ ही जाती है, आज मै  इसके इतिहास पर थोडा प्रकाश डालना चाहता हूँ तथा ‘गाय’ के विषय में कुछ तथ्यों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ |

अंग्रेजों के समय में रोबर्ट क्लाइव ने सब यह पता लगवाया के भारत की कृषि का मूल क्या है तो पता चला के कृषि की सफलता का मूल ‘गाय’ है |

जैसा की हम सभी जानते हैं के भारत १७वी शताब्दी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक था तथा भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था | यही नहीं भारत का निर्यात भी दुनिया में अत्यधिक मात्रा में होता था | उस समय भारत मसाले, अनाज, कपडे, लकड़ी का सामान इत्यादि कई वस्तुएं दुनिया भर के बाज़ार में बेचता था | अर्थशास्त्र के सभी विद्यार्थी जानते हैं के प्राइमरी सेक्टर से वस्तुए बनती है , फिर द्वितीय चरण में बिकती है तथा तीसरे चरण में उनकी सेवाए प्रदान की जाती है | अतः सबसे आवश्यक होता है प्राइमरी या प्राथमिक क्षेत्र जहाँ से कच्चा माल तैयार होता है | भारत की अधिकतर जनता उस समय कृषि करती थी जिससे सबसे अधिक अनाज, मसाले तथा कपास इत्यादि बनता था तथा इसी कारण लोग भी भूखें नहीं मरते थे एवं भारत का निर्यात भी इतना अधिक था | अंग्रेजों के समय में रोबर्ट क्लाइव ने सब यह पता लगवाया के भारत की कृषि का मूल क्या है तो पता चला के कृषि की सफलता का मूल ‘गाय’ है | गाय के गोबर से ‘खाद’ तथा इसके गौ-मूत्र से ‘कीटनाशक’ बन जाया करता था तथा बैल के द्वारा हल जोतकर खेती कर ली जाती थी | यही नहीं किसान के बच्चों तथा परिवार को गाय का दूध तथा इससे बने दही, लस्सी , छाछ , मक्खन इत्यादि खाने को मिलते थे जिसके कारण कोई कुपोषित नहीं होता था और किसी को भूखा नहीं रहना पड़ता था | यही नहीं फसल काटने पर नीचे का बचा हुआ हिस्सा गाय का चारा बन जाता था तथा ऊपर का अनाज या फसल किसान अपने प्रयोग में लेकर बाकी बेच दिया करता था | इस तरह से भारत के लाखो गाँवों से प्राथमिक क्षेत्र से कच्चा माल तैयार हो जाता था फिर उससे सामान बनाकर जैसे (मसाले, कपडे इत्यादि ) दुनिया भर में बेचा जाता था | इस तरह भारत ना सिर्फ आत्मनिर्भर था बल्कि सोने की चिड़िया भी बना |
रोबर्ट क्लाइव ने १७६० में भारत की कृषि व्यवस्था और भारत के व्यापार को खत्म करने के लिए कलकत्ता में पहले गौ-कत्लखाना खुलवाया| यह इतना बड़ा था के इसमें एक दिन में ३०,००० गाय काटी जाती थी | [ii] इसके बाद भारत की कृषि व्यवस्था और किसानो के हालात बद्दतर होते चले गए | गायों को काटने के साथ साथ अंग्रेजों ने किसानो पर ५० से ९० प्रतिशत तक के कर भी थोप दिए जिससे स्थिति और बिगडती चली गयी |   [iii] यही नहीं अंग्रेजो ने बाद में खाद के नाम पर अपनी इंडस्ट्री का बचा हुआ यूरिया और फॉस्फेट भारत में बेचना शुरू कर दिया तथा बहुत मुनाफा कमाया | अब किसानो को खाद, कीटनाशक के पैसे देने पड़ गए तथा बिना गौ के बंगाल में खेती बहुत मुश्किल हो गयी जिसके कारण बाद में बंगाल में अकाल भी पड़े जिसमे अंग्रेजो ने जो थोडा बहुत अनाज उत्पन्न हुआ था उस अनाज को अपनी सेना को दे दिया था और किसानो को मरने छोड़ दिया था | यहाँ तक के विश्वयुद्ध के समय जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल से पत्रकार ने अनाज की कमी के कारण किसानो के भूखे मरने की बात कही तो उन्होंने जवाब दिया के ‘यदि भारत के लोग भूखे मर रहे हैं तो गांधी अब तक क्यों नहीं मरा’ | [iv] इस तरह अंग्रेजों ने अपने देश के व्यापार को आगे बढाने के लिए भारत की कृषि व्यवस्था और उस पर टिके समस्त व्यापार को समाप्त कर डाला जिसके कारण आज तक कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं तथा अभाव में जीवन जी रहे हैं | सिर्फ ‘गाय’ के कारण भारत की कृषि और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था इतनी समृद्ध थी तथा गाँव गाँव में दूध दही की नदियाँ बहने के कारण कोई कुपोषण तथा भूख से नहीं मरता था | यही नहीं भगवान् कृष्ण की गाय चराते थे और उसके दूध का मक्खन बड़े चाव से खाते थे | इस तरह गौ तथा गौ वंश पूरे भारत के समाज में रचा बसा था इसीलिए भारत के समाज में गाय को माँ का दर्जा दिया गया था क्योंकि माँ कभी बच्चो को भूखा नहीं मरने देती और इसी कारण कई साम्राज्यों में गाय अवध्य थी जैसे :
बुद्ध, जैन तथा सिक्ख मतों की पुस्तकों में गाय की हत्या पर निषेध लगाया गया है |
दक्षिण भारत के चोला राजा मनु नीतिचोला ने अपने पुत्र को मृत्युदंड सुनाया था क्योंकि एक गाय ने उनके राज्य में न्याय का घंटा बजाया था, जिससे पता चला था के उसका बछड़ा राजकुमार के रथ के नीचे कुचल कर मर गया था  | [v]
सिख साम्राज्य के समय राजा रणजीत सिंह ने अपने यहाँ गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था |[vi]
यहाँ तक के हैदर अली ने अपने राज्य के समय गाय काटने वाले के हाथ काट देने का नियम बनाया था |[vii]
अकबर तथा जहाँगीर ने भी इनके समय में कुछ जगहों पर गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया था [viii] तथा बहादुर शाह जफ़र ने भी इनके कब्जे वाले इलाकों में १८५७ में गौ हत्या निषेध के आदेश दिए थे |[ix]
मराठा साम्राज्य के समय भी गौ हत्या पर इनके साम्राज्य में पूर्णतः प्रतिबन्ध था तथा गाय काटने वालों को कठोर सजा का नियम था जो पेशवा के समय तक भी कायम था |
आज भी भारत में कई गौशालाएं हैं जहाँ जैविक कृषि गाय के गोबर तथा गो मूत्र से की जा रही है जिससे लोगों को जहरीले कीटनाशक डले हुए अनाज से मुक्ति मिल रही है
यही नहीं आज़ादी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी से बने कारतूस ना चलाने को लेकर ही किया गया था | तथा महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय आदि भी आजादी के आन्दोलन में लोगों से यही कहते थे के स्वतंत्रता मिलने पर सबसे पहला कार्य गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने का करेंगे |[x]मगर अफ़सोस आज़ादी के बाद गौ कतलखानो की संख्या ३६००० तक पहुँच गयी | यही नहीं भारत के लोग खुद अंग्रेजी शिक्षा पढ़कर तथा वामपंथ के प्रभाव में आकर गाय काटने और गाय खाने की बात करने लगे |
आज भी भारत में कई गौशालाएं हैं जहाँ जैविक कृषि गाय के गोबर तथा गो मूत्र से की जा रही है जिससे लोगों को जहरीले कीटनाशक डले हुए अनाज से मुक्ति मिल रही है तथा किसानो को ट्रक्टर तथा डीजल पेट्रोल का खर्चा भी नहीं उठाना पड रहा क्योंकि बैल खेत जोतने में काम आ जाते हैं | महाराष्ट्र के कोल्हापुर के शेल्केवाडी [xi] गाँव में हर घर में गाय के गोबर से बनने वाली गोबर गैस से सारा खाना पकाया जाता है अतः यह गाँव एल.पी.जी. से भी मुक्त हो गया है | यही नहीं गाय के गोबर से बनी गैस को सिलिंडर में भरके लोग गाड़ियाँ तक चलाने की तकनीक आज विकसित कर चुके हैं |[xii]
इन सब विशेषताओं के साथ साथ प्राचीन आयुर्वेद में गाय के पंचगव्य तथा गौमूत्र से कई बीमारियाँ ठीक करने का वर्णन है | अतः देसी गाय के गौमूत्र तथा पंचगव्य से आज पथमेड़ा , जड़खोर ,गौ विज्ञानं अनुसंधान केंद्र नागपूर ,पतंजलि , आर्ट ऑफ़ लिविंग तथा कई गौशालाएं एवं आयुर्वेद और सिद्धा के आचार्य कई तरह की दवाये बना रहे हैं तथा इससे बहुत से बड़े एवं असाध्य रोगों का इलाज भी इन्होने कर के दिखाया है |[xiii] पथमेड़ा ,महर्षि वाङ्ग्भट गौशाला वालाजाबाद , रामदेव बाबा तथा गायत्री परिवार के गाय के कई उत्पादों एवं औषधियों पर बहुत से शोध भी हुए हैं जिनके आधार पर वैज्ञानिक तौर पर यह कहा जा सकता है के गौ मूत्र तथा पंचगव्य एक प्रमाणिक औषधि है |[xiv] इसके अलावा गाय के घी से किये गए अग्निहोत्र यज्ञ से वायु से जहरीली गैस हटाकर उसे शुद्ध करने के प्रयोग तो जापान के हिरोशिमा, नागासाकी तथा भोपाल में गैस त्रासदी के बाद किये ही जा चुके हैं | यज्ञ का अपना एक पूरा विज्ञान हिन्दू धर्म के कई शास्त्रों में भरा पड़ा है |
इस पूरे लेख में मैंने गाय में ३३ कोटि देवी देवता का वास तथा गाय के धार्मिक पक्ष की तो बात ही नहीं की है क्योंकि कुछ अंग्रेजी तथा विज्ञान पढ़े हुए लोगों को धर्म की बाते समझ नहीं आएँगी | मगर यदि सिर्फ ऐतिहासिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक पक्ष भी देखा जाए तो ‘गाय’ भारत ही नहीं दुनिया के लिए बहुत उपयोगी जीव सिद्ध होती है | शायद इसीलिए अमेरिका गौ मूत्र पर पेटेंट करवा रहा है तथा ब्राजील गिर गाय की नस्ल को बढ़ा रहा है | पर भारत के अंग्रेजी तथा वामपंथी दिमाग के लोगों को यदि सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना है तो इनके लिए कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि –
‘उस व्यक्ति को जगाया जा सकता है जो नींद में हो मगर जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे नहीं जगाया जा सकता’


उठो भारत के नर नारियो हुंकार भरो।
गौमाता को राष्ट्र माता स्वीकार करो।।
  गौहत्या का कलंक भारत के माथे से मिटाना हैं ,
          पुनः राष्ट्र को विश्व गुरु बनाना है।
  1966 में धर्म सम्राट करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में गौहत्या बंदी आंदोलन को 2016 में 50 वर्ष पुरे हो रहे हैं।उस आंदोलन में हजारो गौभक्तो ने प्राणों की आहुति दि थी ।उन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिये गौमाता को राष्ट्र माता के पद पर सुशोभित करवाने हेतु ।
।। महा जन आंदोलन ।।
दिनाँक 28 फरवरी 2016 रविवार को दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में पूज्य गोपाल मणि जी महाराज एंव देश के पूज्य सन्तों के सानिध्ये में।
जिसमे देश के सभी राज्यो से हजारो गौभक्तो ने हिश्सा लेंगे ।
     भारत के ऋिषयों ने पूरे देश और दुनिया को एक परिवार या घर के रूप में देखा है। घर बनता ही माँ से है। इस देश में राष्ट्र गीत भी है राष्ट्र गान भी है राष्ट्र पक्षी भी है राष्ट्र पशु भी है राष्ट्रपिता भी हैै। लेकिन हमारे राष्ट्र रूपी घर में राष्ट्र माता नही है
इसलिए गो माता को राष्ट्र माता बनाओ। वेदों में लिखा है
गोस्तु मात्रा न विद्यते
गाय की बराबरी कोई नही कर सकता।  उस गो माता के लिए हमे किसी मंदिर बनाने की जरूरत नही है गो माता के घर पहुंचते ही वह घर मंदिर बन जाता है
गो माता को वो सम्मान दो जो हम भगवान को देते हैं ।
आप एक दिन आकर गो रक्षा के लिए खडे हो जाओ ।
भारत सरकार एंव राज्य सरकार से हमारी निम्न पांच मांगे है।
1. गौ माता को राष्ट्रमाता के पद पर सुशोभित करे एंव गौ मंत्रालयों का अलग से गठन हो।
2. रासायनिक खादो पर प्रतिबंध लगे,गोबर की खाद का उपयोग हो,गोबर गैस का चूल्हा जलाने एंव गोबर गैस को सी.न.जी गैस में परिवर्तन कर मोटर गाड़ी चलाने में उपयोग हो।
4 . 10 वर्ष तक के बालक-बालिकाओ को सरकार की और से भारतीय गाय का दूध नि:शुल्क उपलब्ध हो,किसानो को गाय अनुदान में दी जाये,प्रत्येक गाँव में भारतीय नंदी(सांड)की व्यवस्था हो।
4. जर्सी आदि विदेशी गायों पर पूर्ण प्रतिबंध उसके दूध की विकृति को सार्वजनिक किया जाये,गोचरान  भूमि गौवंश के लिये ही मुक्त हो।
5.गौ-हत्यारों को मृत्यु दण्ड दिया जायें।
ये जानकारी भारतीय गोक्रांति मंच तमिलनाडु चेन्नई के गोवत्स राधेश्याम रावोरिया ने दी।
गौमाता राष्ट्रमाता के चरणों में,हमारा कोटी-कोटी वंदन।

पंचगव्य निर्माण और फायदे

    पंचगव्य निर्माण और फायदे
    पंचगव्य का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही मानव जीवन के स्वास्थ के लिए भी कई गुना इसका महत्व है। पंचगव्य क्या है? पंचगव्य गाय के दूध, घी, दही, गोबर का पानी और गोमूत्र का मिश्रण है। इन पाचों चीजों को मिलाने से जो तत्व बनता है वो पंचगव्य कहलाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि के रूप में माना गया है। पंचगव्य रोग नाशक औषधि है क्योंकि गाय के गोबर में चर्म रोग को दूर करने की क्षमता है। गाय के मूत्र में आक्सीकरण की क्षमता की वजह से डीएनए को खत्म होने से बचाया जा सकता है। 
     गाय के घी से मानसिक और शरीर की क्षमता बढ़ती है। और गाय के दूध से बनी दही में प्रोटीन शरीर को कई रोगों से बचाती है। इसलिए देसी गाय का पंचगव्य उत्तम होता है। गाय के हर एक उत्पाद में मानव के जीवन के लिए बेहद उपयोगी तत्व छिपे हुए हैं। भारतीय नस्ल की गाय में ही सबसे अधिक गुण पाए जाते हैं। 
पंचगव्य के बारे में महर्षि चरक का कहना था कि गोमूत्र कषाय और काफी तेज होती है। जिसकी मुख्य वजह है इसमें मौजूद यूरिक एसिड, अमोनिया, नाइट्रोजन, पोटेसियम, मैंगनीज के साथ-साथ विटामिन बी, ए, और डी का पाया जाना। जो ब्लड प्रैशर को नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा यह पेट संबंधी रोगों को भी दूर करने में लाभदायक होता है।
   देसी गाय के गोमूत्र और गोबर बेहद शक्तिशाली हैं। यदि वैज्ञानिक तौर से देखा जाए तो 23 प्रकार के प्रमुख तत्व गाय के मूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्वों में कई मिनरल, विटामिन और प्रोटीन पाए जाते हैं।
गाय के गोबर को खेत में डालने से खेत के लिए लाभकारी जीवाणु मिलते है। गाय के गोबर की खाद से पैदा हुआ अन्न शरीर को हर तरह की बीमारियों से बचाव करता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय गाय की रीढ की हड्डी में सूर्य केतु नाम की एक अद्भुद नाड़ी होती है जब सूर्य की किरणें इन पर पड़ती है तो यह नाड़ी सूर्य की किरणों के साथ मिलकर सूक्ष्म कणों को बनाती है जिस वजह से देसी गाय का दूध हल्का पीला होता है। गाय का दूध अन्य दूसरे जानवरों के दूध से सबसे ज्यादा पौष्टिक और शरीर को निरोगी करने वाला होता है।   
गाय का दूध हो चाहे घी हर एक-एक उत्पाद इंसान को बीमारियों से बचाने वाला होता है। इसलिए हर इंसान को आपने और अपने परिवार के लिए गाय के दूध का प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि गाय का दूध पीने से कई तरह की बीमारियां शरीर को नहीं लगती हैं। और जो बिमारियां शरीर पर पहले से ही हैं उन्हें भी गाय का हर एक उत्पाद खत्म कर देता है।

गोरक्षार्थ धर्मयुद्ध सुत्रपात

गोरक्षार्थ धर्मयुद्ध सुत्रपात

धर्मप्राण भारत के हरदे सम्राट ब्रह्रालीन अन्न्त श्री स्वामी श्री करपात्री जी  महाराज द्वारा संवंत २00१ में संस्थापित अक्षिल भारतवासीय धर्मसंघ ने अपने जन्मकाल से ही मॉ भारतीय के प्रतीक गो रक्षा पालन पूजा एंव संर्वधन को अपने प्रमुखा उद्देश्यो में स्थान दिया था। सन २१४६ में देश में कांग्रेस की अंतरिम  सरकार बनी । भारतीय जनता ने अपनी सरकार से गोहत्या के कलंक  को देश के मस्तक से मिटाने की मांग की। किंतु  सत्ताधारी  नेताओं ने पूर्व घोषणाओ की उपेक्षा कर धर्मप्राण भारत की इस मांग  को ठुकरा दिया।


सरकार की इस उपेक्षावर्ती  से देश के गोभक्त नेता एवं जागरूक जनता चिन्तित हो उठी। उन्हे इससे गहरा  आघात लगा। सन` १९४६ के दिसम्बर मास में देश के प्रमुख नगर बंबई श्रीलक्ष्मीचण्डी-महायज॔ के साथ ही अखिल भारतीय धर्मसंघ   के तत्वाधान में आयोजित विराट गोरक्षा सम्मेलन मे स्वामी करपात्री जी  ने देश के धार्मिक सामाजिक एंव राजनैतिक नेताओं एंव धर्मप्राण जनता का आह्रान किया। देश के सवोच्च धर्मपीठो के जगदगुरू शंकराचार्य संत महात्मा विद्वान राजा-महाराजा एंव सद`गहस्थो ने देश के समक्ष उपस्थित इस समस्या पर गम्भीर विचार मंथन किया। और सम्मेलन  में सर्वसम्मत  घोषणा की गयी कि गयी ” सरकार से यह सम्मेलन अनुरोध करता है कि देश के सर्वविध कल्याण को ध्यान में रखते हुए भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रतीक गोवंश की हत्या कानून द्वारा प्रतिबन्ध लगा दे। कदाचित सरकार ने अक्षया त्रतीय   २३ तदनुसार २८ अप्रैल  १९९८ तक सम्मेलन के अनुरोध पर ध्यान नही दिया तो अखिल भारतीय धर्म संघ देश की राजधानी दिल्ली मे सम्पुर्ण गो हत्याबंदी के लिए अंहिसात्मक सत्याग्रह प्रारम्भ कर देगा। उक्त घोषणा के पश्चात्  शिष्ट मण्डलो गो रक्षा सम्मेलनो जन सभाओ हस्ताक्षर आन्दोलन एवं स्मरण पत्रों  द्वारा सरकार के कर्ण धारो को गोहत्या बंदी की मॉग का औचित्य एवं अनिर्वायता समझाने की भरसक चेष्टा  की गयी; किंतु सरकार के कानपर जू तक नही रेंगी।

किसानो की भूल गौमाता को बेचना परिणाम गौहत्या

क्या बिना किसी कारण ही ओले किसानों की फसलों को यूँ ही मुफ्त में बर्बाद कर रहे हैं? यदि ऐसा हो रहा है तो वे भगवान पर आरोप लगाकर प्रकृति को चुनौती दे सकते हैं।

बिना किसी वजह के कुछ नहीं होता है। हर चीज के पीछे एक कारण होता है, एक मकसद होता है। चाहे हम समझ पाएँ या नहीं समझे।

क्या जानकर या फिर अंजाने में किसानों से भी कोई गलती हो सकती हैं ? प्राचीनकाल में किसान सबसे सुखी और खुशहाल हुआ करता था। लोग खेती को सबसे उत्तम व्यवसाय मानते थे।
परंतु आधुनिक समय में लोग खेती करने वाले को पीछड़ा हुआ इंसान समझते हैं। यहाँ तक की सरकारें भी किसानों का शोषण करती हैं, आखिर क्यों? 
ऐसे ही हजारों प्रश्न लोगों के मन में उठते हैं, परंतु इन सबकी सही वजह केवल कुछ ही लोग जानते हैं।


किसान ने सिर्फ एक ही गलती की है, बस उस एक ही गलती ने किसान के लिए नरक के द्वार खोल दिए हैं।
ओर किसान की वो भूल है, “गौ माता को बेचना।”
जी हाँ ! आप सही सोच रहे हैं। कसाई भेष बदलकर व्यापारी बन गए हैं। वे भोले-भाले किसानों के घर आते हैं तथा उनसे किसान की माँ , गौ माता को खरीद लेते हैं। किसान हर साल में एक या दो गाये बेचकर बहुत खुश होता हैं क्योंकि वह कम मेहनत में ज्यादा दाम कमा लेता हैं। 
अब वह व्यापारी उर्फ कसाई या तो कुछ दिनों तक दूध निकालकर किसी कसाई को बैच देता है, या फिर अपनी दलाली लेकर दूसरे कसाई को बेच देता हैं। फिर वह गाय कटने के लिए कत्ल खानों (#‎slaughterhouse
) में भेज दी जाती है।
इसका पाप सिर्फ और सिर्फ उस लालची किसान को लगता हैं। जैसा की आप समझ गए होंगे की यही कायदा बनता हैं।
.
अब करें क्या?
जब भी कोई व्यापारी गाय को खरीदने आएँ तो उससे कुछ प्रश्न पूछे।
1. कहाँ से आएँ हो? क्या काम करते हो? और आपके अड़ोसी-पड़ोसी क्या काम करते हैं?
2. अभी ओर कितनी गाय व भैंस हैं? आप इससे पहले भी कोई गाय या भैंस रखते थे क्या?
3. तो पहले वाली गाय कहाँ हैं? क्या आपने उसको बेच दिया? आपको पता है कि आपने जिसको वो गाय बेची थी, उसने उस गाय का क्या किया होगा ?
4. उससे पहले वाली गाय कहाँ हैं? उसको अंतिम बार कब और कहाँ देखा था?
इन सब सवालों के जवाब, जब वह व्यापारी उर्फ कसाई देगा तो आप तुरंत समझ जाओगे कि वह कातिल है।
अब उस कातिल की कैसी हजामत बनाते हो, यह आपका पुण्य कर्म है।
यदि आप ये सारी बातें समझ गए हो तो आप व्यापारी बनकर लोगों के घर जाकर उनको जागरूक करें।
जिस दिन किसान गायों को बेचना बंद कर देंगे, उसी दिन से गौ हत्या होना बंद हो जाएगी तथा ओले पड़ना भी बंद हो जाएँगे। यह हमेशा याद रखे कि गौ हत्यारे आजकल घर-घर पाएँ जाते हैं , वे जाने -अंजाने में गौ हत्या के दोषी हैं।
कुछ समझदार छछूँदर यह सोच रहे होंगे कि हम तो गाय या बैल को गौशाला में छोड़ आते हैं। अरे जनाब वहाँ पर भी तो गौ -हत्यारे पहुँच सकते हैं ना। एक गाय 20-30 साल तक जीवित रह सकती है इसलिए पहले तो यह पता करके आओ कि वहाँ पर तुम्हारे कितने बैल और गाये मौजूद हैं। यदि एक भी कम मिले तो आज से ही प्रायश्चिय करना शुरू कर दो क्योंकि आप भी गौ हत्यारे बन चुके हो।

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गौ हत्यारा कोन शायद हम (किसान)

To the first time in the History of India. आज गाय के रहस्यमय कातिलों का पर्दाफाश किया जा रहा है।
प्रिय किसान भाइयों, जरा ध्यान से यह पढ़ना।

अब मैं आप सबको यह समझाऊँगा कि गौ हत्या का जिम्मेदार कौन हैं, और किसको गौ हत्या का पाप लगेगा?
जैसे एक आदमी की आदर्श उम्र 100 साल तथा अच्छे से काम धाम करने की उम्र 60 साल मानी गई है। ठीक ऐसे ही गाय की आदर्श उम्र 30 साल मानी गई हैं। वह 20 साल तक तो मनुष्य की तरह बीना किसी विशेष सेवा के आराम से जी सकती है। जैसे मनुष्य का 60 साल बाद बुढ़ापा आना शुरू हो जाता है वैसे ही गाय भी 20 साल बाद बुढ़ी होने लग जाती है।
एक गाँव में 100 परिवार रहते हैं। किसी के पास 1 गाय है, किसी दूसरे के पास 2 गाय हैं, किसी अन्य के पास तीन या चार भी हो सकती है। मानलो गाँव में सिर्फ 200 गाये हैं। यदि एक गाय दो साल में सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती हैं तो 1 साल बाद 300 तथा 2 साल बाद 400 हो जाएगी। इसी तरीके से 10 साल बाद उस गाँव में कम से कम 1000-1200 गाये हो जाएगी। अब यदि इतनी गायों के लिए गाँव में गौशाला खोल भी लें तो इतनी गायों के लिए चारा कहाँ से आएगा? 
परंतु हकीकत में दस साल बाद भी गाँव में ज्यादा से ज्यादा 300 गाये हो सकती हैं। बाकी की गाये गई कहाँ ?
गाय या बैल खरीदने के लिए बाहर से व्यापारी बनकर गौ हत्यारे भोले-भाले किसानों के पास आते हैं। उन्होंने किसानों को यह कहकर बेवकूफ बनाया-“हमको दूध देती हुई गाय चाहिए।” अब ये व्यापारी या तो स्वयं कुछ दिनों तक इस गाय का दूध निकालकर कसाईयों को बैच देते हैं या फिर खरीदकर किसी दूसरे को बेच देते हैं। इस तरह से 7-8 महीने बाद वह गाय अपने-आप किसी ना किसी कसाई के पास पहुँच जाती हैं।
अतः इस बात की गाँठ बाँध ले कि किसी भी गाय या बैल को अपने खेत से बाहर नहीं जाने देंगे क्योंकि अब कहीं भी गौचर भूमि नहीं हैं तथा गौ शालाओं में आप सभी की गायों को खिलाने जीतना चारा नहीं हैं। गाय को किसी को बेचना , मतलब अपनी माँ को बेचना हैं। तथा गाय को अपने खेत से बाहर निकालना मतलब अपनी माँ को घर से बाहर निकालना हैं। 
दूध बेचने के चक्कर में बहुत सी गाय रखना तथा आवश्यकता पूरी होने पर गाय या बैल को खेत की दीवार से बाहर निकालना भी पाप हैं।
अतः गौ हत्या में बिलकुल भी भागीदार न बने। इस लेख को अधिक से अधिक लोगों के साथ share करके गौ सेवा का पुण्य कमाएँ।
निवेदक आपका प्यारा
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया