"गोपालन का महत्व"

“गोपालन का महत्व”
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
पोस्ट को ध्यान से पढ़े भाव पूर्ण हे
पुष्टि मार्ग ही एक ऐसो मार्ग है जामे गोपालन।  गो लालन गौसंवर्धन होय हैं ।प्रभु के सम गायन की सेवा होय हैं ताके कई पद हू गवै हैं।तथा प्रभु नंदकुमार की समस्त जीवन क्रियाहू गौचारण मैं भई ।वहीं गौ लीला सो आपको नाम गोपाल भयो ।जगदगुरु वल्लभाचार्य महाप्रभु ने सर्वप्रथम छल्ला बेचिके गाय मगाय प्रभु सेवा में राखी तथा अनेक गायन को पालन आज हू होय हैं ।सर्वप्रथम गाय को दूध आरोग केआपकी ऊध्र्र्व भुजा प्रगटी ।
गोप गण गायन की अष्टान्ग योग सो सेवा करत हैं तासों आठम तिथि को गोपूजन करिके गाय चरावन पधारे । 
तीन दिना ही गौचारण के पद क्यों ❓  
राग भोग श्रंगार की परिपाटी राखी जो तत् तत् रितु मैं तत् तत् सामग्री तत् तत् राग जो मित्र आये हैं ।तासो तीन लोक की गौमाता को आपने चराई अरू वह तीन दिना उत्सवाण्ग भूत पद गान राखे तीन लोक पवित्र करनहेतु अथवा त्रिगुणात्मक गौअन को तीन भावना सो चरावन हेतु तीन दिना ही यह गान होय हैं ।
आज भी श्रीनाथजी की गौ शाला में गौ माता जब तक सुख से भोजन नहीं अरोगे तब तक श्रीनाथजी राजभोग नहीं अरोगते हे सुबह ग्वाल बोले बाद गोपीवल्लभ भोग सर जाते हे तब  ग्वाल मुखिया आयके दर्शन करते हे और श्रीजी बावा से बीनती करते हैं की गौमाता सुखेन विराजत हैं खूब सुख से हे ,तब राजभोग आता है और श्रीनाथजी राजभोग अरोगते हैं ।
मन्दिर के गोवर्धन पूजा चोक को गोबर से लीपा जाता है क्या लोग बाल गोबर को देखकर नाक बंद करते हे खुद कर्ता धर्ता अपने घर में जिसको लिपते हे उस पवित्र गोबर का हम अपमान करते हे ये उचित है क्या
ये ही नहीं नाथद्धारा में खर्च भंडार में तो गौ माता के लिए अलग से रोटी बनाते है वहां से श्रीनाथजी के राजभोग अरोगने से  पहले तो गौ माता के लिए रोटी बनकर जाती है 
प्रभु गाय स्वरूप ही है याके पुराणन मैं तथा भागवत मैं कई बर्णन मिले हैं..
कछुक —-
“गोूर्भूत्वाश्रुमुखि खिन्ना क्रन्दति करूणं विभो”
जब प्रथ्वी भारभूत भई तब गोरूप धरि बैकुण्ठादि लोक सो देवताओं को लेकर प्रभु के पास पहुंची ।
गाय मैं प्रभु बिराजे ताको बर्णन कितने स्थान न मैं प्रभु श्रीकृष्ण हैं ।ये दैत्य लोग अपनी सभा में या प्रकार बर्णन करें हैं ।
—विप्रा गावश्च वेदाश्च तपःसत्यदमः शमः ।
श्रद्धा दया तितिक्षाच क्रतवश्चःहरेस्तनुः ।।
प्रभु प्राकट्य मे सबसे पहले गाय को श्रंगार कियो; गोपाल जो पधारे ।
गावों वृषा वत्सतरा हरिद्रा तैल रूषिताः ।
विचित्र धातु बहेखग बस्त्र काँचन मालिनः ।
जब छोटेपन मै ही पूतना आई तबहू गौमाता सोही रक्षा माँगी ।
गौमूत्रेण स्नापयित्वा पुनर्गो रजसार्भकम ।
रक्षा चक्रुश्च सकृता द्भादशाग्ड़ैषु नामभिः ।
संस्कार न मै भी गौ को ही स्थान–..
खेलन मेभी गौ पूंछ सो क्रीड़ा–
अंतव्रजे तदबला प्रगृहीत पुच्छेः।
बाललीला मै — “वत्सान मुञ्चन क्वचिदमये क्रोप संजात हासःं”।
पोगण्डलीला मै—ततश्च पौगण्डचयश्रितोब्रजे बभूवतुस्तो पशुपाल सम्मतो ।
गाश्चारयन्तो सखिभिस्तमं पदैवृन्दावन ंपुण्यमतीव चक्रतुः
कुमार लीला मैं–अदुरे व्रजभुवः सह गोपाल दारकैः ।
चारयामासतुर्वत्सान नाना क्रीड़ा परिच्छदैः ।
किशोर लीला में —
क्वचित वनाशाय मनोदधे ब्रजात प्रातः समुत्थाय वयस्यवत्सपान .।
प्रबोधयन श्रंग रवेण चारुणा बिनिगतो वत्स पुरस्सरे हरेः ।
 येही भावन सो प्रभु गायन के बिना एक क्षण नाही रहे ।अष्टयाम सेवा मे गायन की सेवा बहुत प्रकार बर्णित हैं ।भोजन करते मैं हू मंगल भोग मे भी लीला बर्णन है ।
अरी मैया इक वन व्याई गैया कोर न मुख लो आयो ।
कमलनयन हरि करत कलेऊ कोर न मुख लो आयो । ……
जब हमारे प्रभु गाय के विना आरोगते नहीं हैं ।
हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है ।
गोपालन नहीं कर सकते हैं तो गोसेवा मे तो सहयोग कर ही सकते है ना ,,
कभी गौ माता को आप गलती से भी लात मारते हे या उसका अपमान कर रहे तो भूल जाइयेगा आप की श्रीजी बावा आपकी तरफ देख भी ले कभी  जितना हो सके गौ माता आदर करिये सम्मान करें प्रेम करे गौ माता हमारे श्रीजी बावा का प्राण हे ये ही धन हे ठाकुर जी के लिए……….

"गोपालन का महत्व"

\”गोपालन का महत्व\”
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
पोस्ट को ध्यान से पढ़े भाव पूर्ण हे
पुष्टि मार्ग ही एक ऐसो मार्ग है जामे गोपालन।  गो लालन गौसंवर्धन होय हैं ।प्रभु के सम गायन की सेवा होय हैं ताके कई पद हू गवै हैं।तथा प्रभु नंदकुमार की समस्त जीवन क्रियाहू गौचारण मैं भई ।वहीं गौ लीला सो आपको नाम गोपाल भयो ।जगदगुरु वल्लभाचार्य महाप्रभु ने सर्वप्रथम छल्ला बेचिके गाय मगाय प्रभु सेवा में राखी तथा अनेक गायन को पालन आज हू होय हैं ।सर्वप्रथम गाय को दूध आरोग केआपकी ऊध्र्र्व भुजा प्रगटी ।
गोप गण गायन की अष्टान्ग योग सो सेवा करत हैं तासों आठम तिथि को गोपूजन करिके गाय चरावन पधारे । 
तीन दिना ही गौचारण के पद क्यों ❓  
राग भोग श्रंगार की परिपाटी राखी जो तत् तत् रितु मैं तत् तत् सामग्री तत् तत् राग जो मित्र आये हैं ।तासो तीन लोक की गौमाता को आपने चराई अरू वह तीन दिना उत्सवाण्ग भूत पद गान राखे तीन लोक पवित्र करनहेतु अथवा त्रिगुणात्मक गौअन को तीन भावना सो चरावन हेतु तीन दिना ही यह गान होय हैं ।
आज भी श्रीनाथजी की गौ शाला में गौ माता जब तक सुख से भोजन नहीं अरोगे तब तक श्रीनाथजी राजभोग नहीं अरोगते हे सुबह ग्वाल बोले बाद गोपीवल्लभ भोग सर जाते हे तब  ग्वाल मुखिया आयके दर्शन करते हे और श्रीजी बावा से बीनती करते हैं की गौमाता सुखेन विराजत हैं खूब सुख से हे ,तब राजभोग आता है और श्रीनाथजी राजभोग अरोगते हैं ।
मन्दिर के गोवर्धन पूजा चोक को गोबर से लीपा जाता है क्या लोग बाल गोबर को देखकर नाक बंद करते हे खुद कर्ता धर्ता अपने घर में जिसको लिपते हे उस पवित्र गोबर का हम अपमान करते हे ये उचित है क्या
ये ही नहीं नाथद्धारा में खर्च भंडार में तो गौ माता के लिए अलग से रोटी बनाते है वहां से श्रीनाथजी के राजभोग अरोगने से  पहले तो गौ माता के लिए रोटी बनकर जाती है 
प्रभु गाय स्वरूप ही है याके पुराणन मैं तथा भागवत मैं कई बर्णन मिले हैं..
कछुक —-
\”गोूर्भूत्वाश्रुमुखि खिन्ना क्रन्दति करूणं विभो\”
जब प्रथ्वी भारभूत भई तब गोरूप धरि बैकुण्ठादि लोक सो देवताओं को लेकर प्रभु के पास पहुंची ।
गाय मैं प्रभु बिराजे ताको बर्णन कितने स्थान न मैं प्रभु श्रीकृष्ण हैं ।ये दैत्य लोग अपनी सभा में या प्रकार बर्णन करें हैं ।
—विप्रा गावश्च वेदाश्च तपःसत्यदमः शमः ।
श्रद्धा दया तितिक्षाच क्रतवश्चःहरेस्तनुः ।।
प्रभु प्राकट्य मे सबसे पहले गाय को श्रंगार कियो; गोपाल जो पधारे ।
गावों वृषा वत्सतरा हरिद्रा तैल रूषिताः ।
विचित्र धातु बहेखग बस्त्र काँचन मालिनः ।
जब छोटेपन मै ही पूतना आई तबहू गौमाता सोही रक्षा माँगी ।
गौमूत्रेण स्नापयित्वा पुनर्गो रजसार्भकम ।
रक्षा चक्रुश्च सकृता द्भादशाग्ड़ैषु नामभिः ।
संस्कार न मै भी गौ को ही स्थान–..
खेलन मेभी गौ पूंछ सो क्रीड़ा–
अंतव्रजे तदबला प्रगृहीत पुच्छेः।
बाललीला मै — \”वत्सान मुञ्चन क्वचिदमये क्रोप संजात हासःं\”।
पोगण्डलीला मै—ततश्च पौगण्डचयश्रितोब्रजे बभूवतुस्तो पशुपाल सम्मतो ।
गाश्चारयन्तो सखिभिस्तमं पदैवृन्दावन ंपुण्यमतीव चक्रतुः
कुमार लीला मैं–अदुरे व्रजभुवः सह गोपाल दारकैः ।
चारयामासतुर्वत्सान नाना क्रीड़ा परिच्छदैः ।
किशोर लीला में —
क्वचित वनाशाय मनोदधे ब्रजात प्रातः समुत्थाय वयस्यवत्सपान .।
प्रबोधयन श्रंग रवेण चारुणा बिनिगतो वत्स पुरस्सरे हरेः ।
 येही भावन सो प्रभु गायन के बिना एक क्षण नाही रहे ।अष्टयाम सेवा मे गायन की सेवा बहुत प्रकार बर्णित हैं ।भोजन करते मैं हू मंगल भोग मे भी लीला बर्णन है ।
अरी मैया इक वन व्याई गैया कोर न मुख लो आयो ।
कमलनयन हरि करत कलेऊ कोर न मुख लो आयो । ……
जब हमारे प्रभु गाय के विना आरोगते नहीं हैं ।
हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है ।
गोपालन नहीं कर सकते हैं तो गोसेवा मे तो सहयोग कर ही सकते है ना ,,
कभी गौ माता को आप गलती से भी लात मारते हे या उसका अपमान कर रहे तो भूल जाइयेगा आप की श्रीजी बावा आपकी तरफ देख भी ले कभी  जितना हो सके गौ माता आदर करिये सम्मान करें प्रेम करे गौ माता हमारे श्रीजी बावा का प्राण हे ये ही धन हे ठाकुर जी के लिए……….

गौ माता की सेवा करले

गौ माता की सेवा करले
सो तीरथ का पुण्य मिलेगा मिलेगा हर दुःख से आराम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,
जिसने गौ की सेवा कर्ली वो जीवन तो निहाल,
गौ पालन से ही कन्हियाँ कहलाये गोपाल है,
गौ माता से प्रेम तू करले तेरे हो जाये गे श्याम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,
जिसके एक स्पर्श से होता कितने ही पापो का नाश ,
देवी देवता नदियां तीरथ करते जिसमे हर पल वास,
वेद पुराण और संत मुनि भी करते है जिसको परनाम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,
चाह कर भी तू भुला सके न गौ माता के एहसान को,
पूजना है तो पूज तो सोनू धरती के भगवन को,
जय गौ माता जय गोपाल रट ते रहो सुबह शाम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,

महात्मा गांधी की दृष्टि में गौ रक्षा का महत्व

महात्मा गांधी की दृष्टि में गौ रक्षा का महत्व

गाय भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। हमारे देश का संपूर्ण राष्टजीवन गाय पर आश्रित है। गौमाता सुखी होने से राष्ट सुखी होगा और गौ माता दुखी होने से राष्ट के प्रति विपत्तियां आयेंगी, ऐसा माना जा सकता है।
गाय को आज व्यावहारिक उपयोगिता के पैमाने पर मापा जा रहा है किंतु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि आधुनिक विज्ञान की सीमाएं हैं। आज का विज्ञान गाय की सूक्ष्म व परमोत्कृष्ट उपयोगिता के विषय में सोच भी नहीं सकता। भारतीय साधु, संत तथा मनीषियों को अपनी साधना के बल पर गाय की इन सूक्ष्म उपयोगिताओं के बारे में ज्ञान प्राप्त किया था। इसलिए ही उन्होंने गाय को गौमाता कहा था। भारतीय शास्त्रों में गौ महात्म्य के विषय में अनेक कथाएं मिलती हैं।
गाय का सांस्कृतिक व आर्थिक महत्व है। संक्षेप में कहा जाए तो भारतीय ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का आधार गाय ही है। गाय के बिना भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कल्पना तक नहीं की जा सकती।
महात्मा गांधी एक मनीषी थे। वह भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे। उनका स्पष्ट मत था कि भारत को पश्चिम का अनुकरण नहीं करना चाहिए। भारत को अपनी संस्कृति. विरासत व मूल्यों के आधार पर विकास की राह पर आगे बढना चाहिए। गांधी जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिन्द स्वराज में लिखा है – अंग्रेजों के विकास माडल को अपनाने से भारत, भारत नहीं रह जाएगा और भारत सच्चा इंगलिस्तान बन जाएगा।
गांधी जी का यह स्पष्ट मानना था कि देश में ग्राम आधारित विकास होने की आवश्यकता है। ग्राम आधारित विकास के लिए भारत जैसे देश में गाय का कितना महत्व है, उनको इस बात का अंदाजा था। गांधी जी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व कहा है। गांधी जी कहते थे कि जो हिन्दू गौ रक्षा के लिए जितना अधिक तत्पर है वह उतना ही श्रेष्ठ हिन्दू है। गौरक्षा के लिए गांधी जी किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे।
महात्मा गांधी ने गाय को अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप बताया है। उनका मानना था कि गौ रक्षा का वास्तविक अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। उन्होंने 1921 में यंग इंडिया पत्रिका में लिखा “ गाय करुणा का काव्य है। यह सौम्य पशु मूर्तिमान करुणा है। वह करोड़ों भारतीयों की मां है। गौ रक्षा का अर्थ है ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा। प्राचीन ऋषि ने, वह जो भी रहा हो, आरंभ गाय से किया। सृष्टि के निम्नतम प्राणियों की रक्षा का प्रश्न और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ईश्वर ने उन्हें वाणी नहीं दी है। ” ( यंग इंडिया, 6-11-1921)
गांधी जी ने अत्यंत मार्मिक शब्दों में लिखा – “ गाय अवमानवीय सृष्टि का पवित्रतम रुप है। वह प्राणियों में सबसे समर्थ अर्थात मनुष्यों के हाथों न्याय पाने के वास्ते सभी अवमानवीय जीवों की ओर से हमें गुहार करती है। वह अपनी आंखों की भाषा में हमसे यह कहती प्रतीत होती है : ईश्वर ने तुम्हें हमारा स्वामी इसलिए नहीं बनाया है कि तुम हमें मार डालो, हमारा मांस खाओ अथवा किसी अन्य प्रकार से हमारे साथ दुर्वव्यहार करो, बल्कि इसलिए बनाया है कि तुम हमारे मित्र तथा संरक्षक बन कर रहो।” ( यंग इंडिया, 26.06.1924)
महात्मा गांधी गौ माता को जन्मदात्री मां से भी श्रेष्ठ मानते थे। गौ माता निस्वार्थ भाव से पूरे विश्व की सेवा करती है। इसके बदले में वह कुछ भी नहीं मांगती। केवल जिंदा रहने तक ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी वह हमारे काम में आती है। अगर निस्वार्थ भाव से सेवा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहीं देखने को मिलता है तो वह गौ माता है।
गांधी जी लिखते हैं – “ गोमाता जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है। हमारी माता हमें दो वर्ष दुग्धपान कराती है और यह आशा करती है कि हम बडे होकर उसकी सेवा करेंगे। गाय हमसे चारे और दाने के अलावा किसी और चीज की आशा नहीं करती। हमारी मां प्राय: रुग्ण हो जाती है और हमसे सेवा करने की अपेक्षा करती है। गोमाता शायद ही कभी बीमार पडती है। गोमाता हमारी सेवा आजीवन ही नहीं करती, अपितु अपनी मृत्यु के उपरांत भी करती है। अपनी मां की मृत्यु होने पर हमें दफनाने या उसका दाह संस्कार करने पर भी धनराशि व्यय करनी पडती है। गोमाता मर जाने पर भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होती है जितनी अपने जीवन काल में थी। हम उसके शरीर के हर अंग – मांस, अस्थियां. आंतें, सींग और चर्म का इस्तमाल कर सकते हैं। ये बात हमें जन्म देने वाली मां की निंदा के विचार से नहीं कह रहा हूं बल्कि यह दिखाने के लिए कह रहा हूं कि मैं गाय की पूजा क्यों करता हूं। ”( हरिजन , 15.09-1940)
गांधीजी गौ रक्षा के लिए संपूर्ण विश्व का मुकाबला करने के लिए तैयार थे। 1925 में यंग इंडिया में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है – “ मैं गाय की पूजा करता हूं और उसकी पूजा का समर्थन करने के लिए दुनिया का मुकाबला करने को तैयार हूं। ” – (यंग इंडिया, 1-1-1925)
गांधीजी का मानना था कि गौ हत्या का कलंक सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि पूरे देश से बंद होना चाहिए। इसके लिए भारत से यह कार्य शुरु हो, यह वह चाहते थे। उन्होंने लिखा है – “ मेरी आकांक्षा है कि गौ रक्षा के सिद्धांत की मान्यता संपूर्ण विश्व में हो। पर इसके लिए यह आवश्यक है पहले भारत में गौवंश की दुर्गति समाप्त हो और उसे उचित स्थान मिले ” – (यंग इंडिया, 29-1-1925)
आर्थिक दृष्टि से लाभदायक न होने वाले पशुओं की हत्या की जो परंपरा पश्चिम में विकसित हुई है गांधी जी उसकी निंदा करते थे। गांधीजी उसे ‘हृदयहीन व्यवस्था’ कहते थे। उन्होंने बार-बार कहा कि ऐसी व्यवस्था का भारत में कोई स्थान नहीं है। इस बारे में उन्होंने एक बार हरिजन पत्रिका में लिखा। गांधीजी की शब्दों में – “ जहां तक गौरक्षा की शुद्ध आर्थिक आवश्यकता का प्रश्न है, यदि इस पर केवल इसी दृष्टि से विचार किया जाए तो इसका हल आसान है। तब तो बिना कोई विचार किये उन सभी पशुओं को मार देना चाहिए जिनका दूध सूख गया है या जिन पर आने वाले खर्च की तुलना में उनसे मिलने वाले दूध की कीमत कम है या जो बूढे और नाकारा हो गए हैं। लेकिन इस हृदयहीन व्यवस्था के लिए भारत में कोई स्थान नहीं है , यद्यपि विरोधाभासों की इस भूमि के निवासी वस्तुत: अनेक हृदयहीन कृत्यों के दोषी हैं। ” (हरिजन ,31.08. 1947)
महात्मा गांधी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व कहा है। गौ के महात्म्य के बारे में उन्होंने लिखा है – हिन्दू धर्म का केन्द्रीय तत्व गोरक्षा है। मैं गोरक्षा को मानव विकास की सबसे अदभुत घटना मानता हूं। यह मानव का उदात्तीकरण करती है। मेरी दृष्टि में गाय का अर्थ समस्त अवमानवीय जगत है। गाय के माध्यम से मनुष्य समस्त जीवजगत के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करता है। गाय को इसके लिए क्यों चुना गया, इसका कारण स्पष्ट है। भारत में गाय मनुष्य की सबसे अच्छी साथिन थी। उसे कामधेनु कहा गया। वह केवल दूध ही नहीं देती थी, बल्कि उसी के बदौलत कृषि संभव हो पाई। ” – (यंग इंड़िया, 6.10.1921)
महात्मा गांधी ने गौ रक्षा को हिन्दू धर्म के संरक्षण के साथ जोडा है। उनके शब्दों में – गो रक्षा विश्व को हिन्दू धर्म की देन है। हिन्दू धर्म तब तक जीवित रहेगा जब तक गोरक्षक हिन्दू मौजूद है। ”- (यंग इंड़िया, 6.10.1921)
अच्छे हिन्दुओं को हम कैसे परखेंगे। क्या उनके मस्तक से, तिलक से या मंत्रोच्चार से। गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि गौ रक्षा की योग्यता ही हिन्दू होने का आधार है। गांधी जी के शब्दों में – “ हिन्दुओं की परख उनके तिलक, मंत्रों के शुद्ध उच्चारण, तीर्थयात्राओं तथा जात -पात के नियमों के अत्यौपचारिक पालन से नहीं की जाएगी, बल्कि गाय की रक्षा करने की उनकी योग्यता के आधार पर की जाएगी। ” (यंग इंडिया . 6.10.1921)
गांधी जी के उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि बापू गौ रक्षा को कितना महत्वपूर्ण मानते थे। लेकिन इसे त्रासदी ही कहना चाहिए कि गांधी के देश में गौ हत्या धडल्ले से चल रही है। महात्मा गांधी के विचारों की हत्या कर दी गई है। आवश्यकता इस बात की है कि गांधी जी के विचारों के आधार पर, भारतीय शाश्वत संस्कृति व परंपराओं के आधार पर भारतीय व्यवस्था को स्थापित किया जाए और गौ माता की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं, तभी गांधीजी के सपनों का राम राज्य स्थापित हो पाएगा।

गौसेवा संकल्प

– आइए मिलकर हम गोसेवा संकल्प लें –

गोसेवा संकल्प

मैं …(आप अपना नाम लें)… गोरक्षार्थ – गोहितार्थ आज से निम्नलिखित गोसेवा संकल्प लेता हूँ।

  1. नित्य नियम मे इष्ट उपासना के अंतर्गत गोरक्षार्थ नियमित प्रार्थना करूंगा।
  2. निराश्रित एवं असहाय गोवंश के सम्पोषणार्थ नियमित गोग्रास प्रदान करूंगा।
  3. दैनिक उपासना, आहार एवं औषधियों मे यथाप्राप्त गोउत्पादों का ही प्रयोग करूंगा।
  4. गोवंश का अहित हो ऐसी वस्तुओं और व्यक्तियों से व्यवहार नहीं करूंगा।
  5. जो जन प्रतिनिधि एवं राजनीतिक दल गौवंश को संरक्षणता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हो उन्हीं को अपना विस्वास मत दूँगा।

उपरोक्त पांचों संकल्प श्री कृष्ण भगवान और उनकी प्रिय गौमाता की प्रसन्नता हेतु लेने पर हमारे मनों मे दृढ़ता आएगी। भगवान कृष्ण हमें हमारा गोसेवा संकल्प पूरा करने की शक्ति दें ऐसी नियमित प्रार्थना करनी चाहिए।
आपके द्वारा लिया गया गोसेवा संकल्प ही हमारे उद्देश्यों के प्रति आपकी बहुत बड़ी सहायता है।
आपका बहुत धन्यवाद।

गो-सेवा – घर बैठे!

गो-सेवा – घर बैठे!

गोवंश रक्षण यह विष्वस्तरिय अतिव्यापक विषय है। मनुष्य को निरोगी रखने के लिये भी यह अतीआवष्यक विषय हैं। इसी लिये संपूर्ण मनुष्य जाती का इसमें सहभाग आवष्यक है। प्रत्येक व्यक्ति में तथा हर घर में यह जागृती आना आवष्यक है। कुछ पहलू इतने आसान है कि रोज के जीवन में हमे अतिरिक्त/अलग से समय निकालने की भी आवष्यकता नहीं हैं।

गोवंश रक्षण यह विष्वस्तरिय अतिव्यापक विषय है। मनुष्य को निरोगी रखने के लिये भी यह अतीआवष्यक विषय हैं। इसी लिये संपूर्ण मनुष्य जाती का इसमें सहभाग आवष्यक है। कहते भी है वो की किसी भी कठिण कार्य को एक व्यक्ती के लिये महत्कठिण हैं। कुछ लोगों के लिये थोडा कठिण है तथा सभीको मिलकर योजना बद्ध तरिके से करने पर वह आसान होता हैं। गोरक्षा का विषय भी इस प्रकारका कठिण परंतू सभी मनुष्य ने तय करने पर एक आसान विषय ही हैं। परंतु प्रत्येक व्यक्ति में तथा हर घर में यह जागृती आना आवष्यक है। कुछ पहलू इतने आसान है कि रोज के जीवन में हमे अतिरिक्त/अलग से समय निकालने की भी आवष्यकता नहीं हैं।

हर घर में रोज खाना पकता है तथा अनेक घरों मे उसमेसे गो-ग्रास निकालने की पद्धती है जो हमारी संस्कृती का अभिन्न अंग भी हैं, पर यही पकाया हुआ अन्न ज्यादा मात्रा में गाय के पेट में जानेपर गाय की पचन संस्था को बिगाडता है क्योंकी गाय की पचन संस्था मनुष्य की तरह पका अन्न पचानेको अक्षम हैं। इसीलिये यह गोग्रास अल्प मात्रा में निकाले। तथा हमेषा ताजा गोग्रास ही दें। पका गोग्रास खाने से गाय के दूध, गोबर तथा गोमूत्र के गुणवत्ता में फर्क पडता हैं तथा गाय बिमार भी पड सकती हैं।

ष्    षहरोंमे अभी गोवंष की संख्या बहुत ही मर्यादित हुई हैं। लगभग 500 घरोंकी आवासिय क्षेत्र में एकाध गाय दिखती हैं। अब इन 500 घरों से उस गाय को पका हुआ गोग्रास मिलातो उस गाय का क्या होगा, एक चिंतनिय बात हैं। इसलिये इसे प्रतिनिधिक तरिकेसे अल्प मात्र में लेकर गाय को घर मे लाये हुये सब्जियों के टंडल, फलों की छाल जिन्हे हम घरके कचरेकी टोकरीयों में डालकर कचरे में फेंकते हैं जहाँ वह सड़ गल जाता हैं इसकी बजाय व टंडल तथा छाल जो की तंतूमय होने से गायके लिये अतिपौष्टिक रहता हैं, यह गाय को खाने को दे सकते हैं। परंतु इनचिजों को प्लास्टिक पन्नी में डालकर गायको न दे। क्योंकी आज प्लॅस्टिक पन्नीया सर्वत्र उपलब्ध व उपयोग के लिये आसान होने के कारण यह सर्व व्यापी हो गयी हैं। परंतु इसीने अभीतक हजारों गोवंष का प्राण लिया हैं।

हमारे संबंधित लोग जो किसानी/खेती कर रहे हैं उन्हे गो आधारित सेंद्रिय खेती करने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।इस प्रकार से उत्पादित अनाज को हम अपने प्रयत्नोंसे ग्राहक बनाकर दे सकते हैं। 

हमारे परिजनों को सेंद्रिय खेती में बना अनाज लेने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।


सब्जियाँ तथा खाने की चिजें हम अपनी सुविधा नुसार प्लॅस्टिक पन्नीयों में रखते हैं तथा फेंकते समय भी इन्ही पन्नीयों सहित फेंकते हैं। इन प्लॅस्टिक पन्नीयों में रखे खादय पदार्थो के आकर्षण से गोवंष उसे पन्नी सहित खाता हैं। गाव कस की गाय तथा षहरी गाय इनमें तुलना करनेपर षहरों में सडकों पर गायें दिखती है वह लगभग सभी गर्भवती गाय के समान बडे पेटवाली दिखती हैं। क्योंकी रोज लगभग 100 ग्राम प्लास्टिक पन्नीया उसकी पेट में जाकर जमा होते रहती है तथा वह गोबर के साथ बाहर न निकलने के कारण वही जमा रहकर पेट में जहर फैलाती हैं। कुछ गायोंका आॅपरेषन करने पर उनके पेटसे लगभग 40 किलो तक पन्नीया निकली हैं। हमारे आधुनिकता का प्रतिक प्लास्टिक पन्नीया गाय के लिये मात्र मृत्युदंड साबित हो रही हैं। कसाई द्वारा हम प्रयत्न पूर्वक गायको बचा सकते हैं। पर जाने अनजाने में हम ही छुपे कसाई बन रहे हैं। उसका क्या! खाने की कुछ भी चिजें प्लास्टिक पन्नी में न फेंकना तथा हो सके तब तक पतली प्लास्टिक पन्नीया ही न वापरना यह आज के युग की सबसे बड़ी गोसेवा तथा गोरक्षा सिद्ध होगी।
    
हमारे परिवार को स्वस्थ रखने के लिये हम देसी गाय के दूध तथा घी का आग्रह रख सकते है। निरोगी स्वस्थ जीवन की यह प्राथमिक नीव हैं। परंतू आज सर्वत्र संकरित विदेषी गाय का दूध तथा घी मिल रहा है जो उतना आरोग्य दायी नहीं हैं। कहे तो आरोग्य घतक हैं। इससे बचना होगा।
   
कुछ घरों में ग्वाले दूध देते हैं। उनसे हम देसी गाय काही दूध मांगकर उन्हे देसी गाय के पालन के लिये प्रोत्साहित कर सकते है तथा गोपाष्टमी वसुबारस आदी गाय संबंधित मंगलपर्वपर उनके गोषाला के रखरखाव का निरिक्षण कर वह गाय की स्थिती भी देख सकते हैं। आवष्यक दिषानिर्देष वह ग्वाला सहर्ष स्विकार करेगा क्योकी हमसे मिले पैसे ही तो उसका जीवननिर्वाह हैं। इससे वहा की गायों के रखरखाव में भी सुधार आयेगा। याने गाय की पूजा भी होगी और वास्तव में दिर्घकालीन गोसेवा भी।
    
अनेक गोषालाये नित्या उपयोग वस्तूएँ बनाती हैं। उदा. दंतमंजन, नहाने का साबून, पूजा की धूपबत्ती, बालोंको धोने कालोषन, मच्छर अगरबत्ती आदी इन चिजोंकी गुणवत्ता में वास्तव में कही भी नही टिकती। गोबर से बने दंतमंजन से दातों में कीड भी नही पडती तथा दात दिर्घकाल निरोगी रहते हैं। गोबर से बने साबून से त्वचा भी निरोगी रहती हैं तथा रक्तचाप भी योग्य रहता हैं। गोमूत्र से बने केष उत्पादोंसे (तेल, लोषल) बालों का झड़ना तथा रूसीं का सफल उपचार होना हैं। नियमित उपचार से बाल चमकिले तथा निरोगी बनते हैं।
    
रोज के जीवन में देसी गाय का घी हमारी भूक को वृद्धिंगत करता हैं तथा पचनसंस्था को भी मजबूत रखना हैं। रोज रात को सोते समय देसी गाय के दूध में 1, 2 चम्मच देसी गाय का घी डालकर लेते है तो सुबह पेट अच्छा साफ होता हैं। हमारे देष में इतनी सादी चिज के लिये लोग गोलिया तथा न जाने क्या क्या दवाईयाँ लेते हैं।
    
गोबर से बनी धुपबत्ती घर में षुद्ध हवा रहने में मदत कर वातावरण मंगलमय बनाती हैं। इन सभी चिजों का हम वापर कर दुसरों को इसके लिये प्रोत्साहित करना यह हमारी सामुहिक गोसेवा नहीं हैं क्या?

अगर हमारे पास हमारे दैनंदिन कार्यो के बावजुद कुछ अतिरिक्त समय है, या हम सेवानिवृत्त हैं तो हम बाकी लोगों से कुघ अलग भी कर सकते हैं। गाय विषय पर जो स्वास्थ संबंधित तथा कृषि संबंधि अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध होनेवाले पत्र पत्रिकाओं में प्रसिद्ध कर सकते हैं।
हमारे संबंधित लोग जो किसानी/खेती कर रहे हैं उन्हे गो आधारित सेंद्रिय खेती करने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।इस प्रकार से उत्पादित अनाज को हम अपने प्रयत्नोंसे ग्राहक बनाकर दे सकते हैं। हमारे परिजनों को सेंद्रिय खेती में बना अनाज लेने के लिये हम आग्रह कर सकते हैं।
यह सभी बिंदू ऐसे है जो हम हमारे रोज के व्यवहारिक कार्य करते समय भी आसानीसे कर सकते हैं।

क्या हम रोज गोसेवा नहीं कर रहें हैं?

साम्भार : Dr. Nandini Bhojraj

गोसेवा – भगवत्सेवा

गोसेवा – भगवत्सेवा

जिन क्षेत्रों में अधिक गोसमुदाय होता है, वहाँ रोग कम पनपते हैं। जिस स्थान पर गाय, बैल, बछड़ा आदि मूत्र का विसर्जन करते हैं, उस स्थान पर दीमक नहीं लगती। गाय के गोबर की खाद सभी खादों से अधिक उपजाउ और भूमि के लिये रसवर्धक होती है। बरसात के दिनों में फसलरहित खेतों में गायों के अधिक घूमने-चरने से उन खेतों में रबी की फसल अधिक पैदा होती है और वह फसल रोगरहित होती है। गोमूत्र से जो औषधि बनती है, वह उदर रोगों की अचूक दवा होती है। खाली पेट थोड़ा-सा गोमूत्र पीने से बीमारियाँ नहीं होती हैं। गोमूत्र में आँवला, नींबू, आम की गुठली तथा बबूल की पत्ती इत्यादि के गुण होते हैं। नींबू रस पेट में जाकर पेट की गंदगी को चुनकर पेट को साफ करता है, वैसे ही गोमूत्र से मुँह, गला एवं पेट शुद्ध होता है।
जिस भूमि पर गायें नहीं चरतीं, वहाँ पर स्वाभाविक ही घास का पैदा होना कम हो जाता है। भूमि पर उगी हुई घास गाय के चरने से जल्दी बढ़ती एवं घनी होती है। बीजयुक्त पकी घास खाकर भूमि पर विचरण करके चरते हुए गायों के गोबर के द्वारा एक भूमि से दूसरी भूमि (स्थान) पर घास के बीजों का स्थानांतरण होता रहता है। आज के समय में वनों के अधिक नष्ट होने का कारण भी गोवंश और गोपालकों की कमी ही है, क्योंकि गोपालकों की संख्या अधिक होती तो गायों की संख्या भी अधिक होती और अधिक गायों को चराने के लिये गोपालक वनों को जाते, जिससे वनों की सुरक्षा वे स्वयं करते तो वनों की बहुत वृद्धि होती, किंतु अब ऐसा न होने से वन असुरक्षित हो गये हैं।
गोसेवा से जितना लौकिक लाभ है, उतना ही अलौकिक लाभ भी है। जो गोसेवा निष्कामभाव से की जाती है अर्थात् पूरी उदारता से की जाती है, उसका सीधा सम्बन्ध भगवान की सेवा से ही होता है। इसलिये गायों की सेवा परम लाभ का साधन है। गाय स्वयं पवित्र है, इसलिये उसका दूध भी परम पवित्र है। गाय अपवित्र वस्तु को भी पवित्र बना देती है, क्योंकि उसके शरीर में पवित्रता के अलावा और कुछ है ही नहीं।


गौ माता की सेवा की कथा से सीखे जीवन मे सुखी रहने का तरीका

गौ माता की सेवा की कथा से सीखे जीवन मे सुखी रहने का तरीका

शास्त्रो मे बताया गया है की गाय इस सृष्टि का सर्वोत्तम एवम् पूज्य प्राणी है तथा गाय की महत्वता, उपादेयता, आवश्यकता आध्यात्मिक, धार्मिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वविदित है। यदि हम व्यवहारिक रुप में  प्रतिदिन गाय की सेवा करते हैं तो उसको बहुत आश्चर्यचकित करने वाले सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते है, बहुत सी आयुर्वेदिक औषधि है जो गौ मूत्र से ही बनाई जाती है और कई गंभीर बीमारिओ की चिकित्सा मे बहुत लाभप्रत होती है |

आज की दुनिया मे लोग सुख पाने के लिए कई उपाय करते है पर सफल नही होते है | कुछ लोग धन, सुविधाएं आने से सुखी हो जाते हैं और इनके जाने से दुखी भी हो जाते हैं। यदि हम दोनों ही परिस्थितयों के साथ अपनी सोच मे बदलाव करे तो हम धन जाए पर भी सुखी रह सकते है |
इस साधारण कहानी से समझे सुखी रहने का सीधा तरीका…
एक आश्रम में संत महात्मा अपने शिष्य के साथ रहते थे। एक दिन प्रात: शिष्य ने गुरु जी से कहा कि गुरुजी एक भक्त ने हमारे आश्रम के लिए गाय दान की है।
संत ने मुस्कुराते हुए कहा कि यह तो अच्छा है। अब हमे रोज ताजा दूध पीने का तथा गौ माता की सेवा का सौभाग्य प्राप्त होगा | संत और शिष्य ने गाय के दूध का सेवन करने लगे।
कुछ दिन बाद शिष्य ने संत के कहा कि गुरुजी जिस भक्त ने गाय दान मे दी थी, वह अपनी गाय का पुन: वापस ले गया है।
संत ने फिर मुस्कुराते हुए कहा कि अच्छा है। अब रोज-रोज गोबर उठाने की परेशानी खत्म हो गई।
 इस कहानी की सीख यही है कि परिस्थिति कितनी ही विपरीत क्यो ना हो अगर हम अपनी सोच पर नियंत्रण करे और सकारात्मक सोचे तो हम अपने जीवन को सुखी जीवन बना सकते है |
 सकारात्मक विचारो के लिए हमे अपने मन को शांत रखना बहुत आवश्यक है और मन को शांत करने का सबसे अच्छा उपाय है अपने ईष्ट देव की पूजा तथा माता पिता की पूजा |