गाय गौ –रक्षा का वैज्ञानिक पक्ष

गाय गौ –रक्षा का वैज्ञानिक पक्ष
यदि सिर्फ ऐतिहासिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक पक्ष भी देखा जाए तो ‘गाय’ भारत ही नहीं दुनिया के लिए बहुत उपयोगी जीव सिद्ध होती है।
आज मै ‘गाय’ के इतिहास पर थोडा प्रकाश डालना चाहता हूँ तथा ‘गाय’ के विषय में कुछ तथ्यों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ |
‘गाय’ – यह एक ऐसा शब्द है जिससे भारत के कई लोगों की आस्था जुडी हुई है | सदियों से इस भूमि पर गाय का सम्मान तथा रक्षा होते आये हैं | यह इस हद तक भारत के लोगों के मन में बसी हुई है की मुगलों तक को कई बार अपना राज्य बचाने के लिए ‘गौ-हत्या’ प्रतिबंधित करनी पड़ी थी | यही नहीं अंग्रेजों के समय भी प्रथम क्रांति गाय के प्रश्न पर ही हुई थी | पर बाद में अंग्रेजों ने इसी गाय को इस कदर अपने पाठ्यक्रम में बदनाम किया की आज कई भारतीय ‘गाय’ की हत्या तथा इसे भोजन के रूप में ग्रहण करने की वकालत करते हैं |  कुछ महीनो पहले ही केरला में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सरेआम सड़क पर गाय को काटकर तथा उसका मॉस पकाकर लोगों में बांटा था  | इसके अगले ही दिन आई.आई.टी. मद्रास में ५० छात्रों ने गाय का मॉस खाने की पार्टी आयोजित करी , जिसमे सभी को गौ मॉस परोसा गया | [i] यह इस बात के विरोध में था के भारत सरकार ने गाय को काटने और बेचने पर रोक क्यों लगाईं | कई वामपंथी लोगों का मानना है के यह उनके खाने के मामले में दखल देना है |
अब समझ नहीं आता के जिस देश में कई तरह की जलवायु तथा लाखो तरह के पकवान एवं सब्जियां हर राज्य में होती हों वहां सिर्फ गाय को खाकर ही भूख मिटाने की जिद कहाँ तक जायज़ है, और वो भी तब जब देश की आधे से ज्यादा आबादी गाय को ‘माँ’ और इश्वर का दर्जा देती हो | यह सब एक विशेष प्रकार की नफरत की राजनीति के लिए किया जा रहा है जिसमे वामपंथी हर वो काम करने के लिए खड़े हो जाते हैं जिसमे हिन्दू धर्म का अपमान होता हो , क्योंकि वामपंथी विचारधारा के मूल में ही यह है के ‘धर्म एक अफीम की तरह है’ तथा धर्म को समाप्त कर देना चाहिए | हालाँकि कार्ल मार्क्स ने वहां रिलिजन शब्द का प्रयोग किया था जो असल में धर्म नहीं है मगर हिन्दुस्तान के वामपंथी धर्म और रिलिजन दोनों को एक ही समझ बैठे , शायद यह उनकी राजनीति चमकाने के लिए उन्हे उचित लगा होगा | ‘गाय’ जो हर थोड़े दिन में कहीं ना कहीं से मीडिया के निशाने पर आ ही जाती है, आज मै  इसके इतिहास पर थोडा प्रकाश डालना चाहता हूँ तथा ‘गाय’ के विषय में कुछ तथ्यों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ |

अंग्रेजों के समय में रोबर्ट क्लाइव ने सब यह पता लगवाया के भारत की कृषि का मूल क्या है तो पता चला के कृषि की सफलता का मूल ‘गाय’ है |

जैसा की हम सभी जानते हैं के भारत १७वी शताब्दी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक था तथा भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था | यही नहीं भारत का निर्यात भी दुनिया में अत्यधिक मात्रा में होता था | उस समय भारत मसाले, अनाज, कपडे, लकड़ी का सामान इत्यादि कई वस्तुएं दुनिया भर के बाज़ार में बेचता था | अर्थशास्त्र के सभी विद्यार्थी जानते हैं के प्राइमरी सेक्टर से वस्तुए बनती है , फिर द्वितीय चरण में बिकती है तथा तीसरे चरण में उनकी सेवाए प्रदान की जाती है | अतः सबसे आवश्यक होता है प्राइमरी या प्राथमिक क्षेत्र जहाँ से कच्चा माल तैयार होता है | भारत की अधिकतर जनता उस समय कृषि करती थी जिससे सबसे अधिक अनाज, मसाले तथा कपास इत्यादि बनता था तथा इसी कारण लोग भी भूखें नहीं मरते थे एवं भारत का निर्यात भी इतना अधिक था | अंग्रेजों के समय में रोबर्ट क्लाइव ने सब यह पता लगवाया के भारत की कृषि का मूल क्या है तो पता चला के कृषि की सफलता का मूल ‘गाय’ है | गाय के गोबर से ‘खाद’ तथा इसके गौ-मूत्र से ‘कीटनाशक’ बन जाया करता था तथा बैल के द्वारा हल जोतकर खेती कर ली जाती थी | यही नहीं किसान के बच्चों तथा परिवार को गाय का दूध तथा इससे बने दही, लस्सी , छाछ , मक्खन इत्यादि खाने को मिलते थे जिसके कारण कोई कुपोषित नहीं होता था और किसी को भूखा नहीं रहना पड़ता था | यही नहीं फसल काटने पर नीचे का बचा हुआ हिस्सा गाय का चारा बन जाता था तथा ऊपर का अनाज या फसल किसान अपने प्रयोग में लेकर बाकी बेच दिया करता था | इस तरह से भारत के लाखो गाँवों से प्राथमिक क्षेत्र से कच्चा माल तैयार हो जाता था फिर उससे सामान बनाकर जैसे (मसाले, कपडे इत्यादि ) दुनिया भर में बेचा जाता था | इस तरह भारत ना सिर्फ आत्मनिर्भर था बल्कि सोने की चिड़िया भी बना |
रोबर्ट क्लाइव ने १७६० में भारत की कृषि व्यवस्था और भारत के व्यापार को खत्म करने के लिए कलकत्ता में पहले गौ-कत्लखाना खुलवाया| यह इतना बड़ा था के इसमें एक दिन में ३०,००० गाय काटी जाती थी | [ii] इसके बाद भारत की कृषि व्यवस्था और किसानो के हालात बद्दतर होते चले गए | गायों को काटने के साथ साथ अंग्रेजों ने किसानो पर ५० से ९० प्रतिशत तक के कर भी थोप दिए जिससे स्थिति और बिगडती चली गयी |   [iii] यही नहीं अंग्रेजो ने बाद में खाद के नाम पर अपनी इंडस्ट्री का बचा हुआ यूरिया और फॉस्फेट भारत में बेचना शुरू कर दिया तथा बहुत मुनाफा कमाया | अब किसानो को खाद, कीटनाशक के पैसे देने पड़ गए तथा बिना गौ के बंगाल में खेती बहुत मुश्किल हो गयी जिसके कारण बाद में बंगाल में अकाल भी पड़े जिसमे अंग्रेजो ने जो थोडा बहुत अनाज उत्पन्न हुआ था उस अनाज को अपनी सेना को दे दिया था और किसानो को मरने छोड़ दिया था | यहाँ तक के विश्वयुद्ध के समय जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल से पत्रकार ने अनाज की कमी के कारण किसानो के भूखे मरने की बात कही तो उन्होंने जवाब दिया के ‘यदि भारत के लोग भूखे मर रहे हैं तो गांधी अब तक क्यों नहीं मरा’ | [iv] इस तरह अंग्रेजों ने अपने देश के व्यापार को आगे बढाने के लिए भारत की कृषि व्यवस्था और उस पर टिके समस्त व्यापार को समाप्त कर डाला जिसके कारण आज तक कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं तथा अभाव में जीवन जी रहे हैं | सिर्फ ‘गाय’ के कारण भारत की कृषि और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था इतनी समृद्ध थी तथा गाँव गाँव में दूध दही की नदियाँ बहने के कारण कोई कुपोषण तथा भूख से नहीं मरता था | यही नहीं भगवान् कृष्ण की गाय चराते थे और उसके दूध का मक्खन बड़े चाव से खाते थे | इस तरह गौ तथा गौ वंश पूरे भारत के समाज में रचा बसा था इसीलिए भारत के समाज में गाय को माँ का दर्जा दिया गया था क्योंकि माँ कभी बच्चो को भूखा नहीं मरने देती और इसी कारण कई साम्राज्यों में गाय अवध्य थी जैसे :
बुद्ध, जैन तथा सिक्ख मतों की पुस्तकों में गाय की हत्या पर निषेध लगाया गया है |
दक्षिण भारत के चोला राजा मनु नीतिचोला ने अपने पुत्र को मृत्युदंड सुनाया था क्योंकि एक गाय ने उनके राज्य में न्याय का घंटा बजाया था, जिससे पता चला था के उसका बछड़ा राजकुमार के रथ के नीचे कुचल कर मर गया था  | [v]
सिख साम्राज्य के समय राजा रणजीत सिंह ने अपने यहाँ गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था |[vi]
यहाँ तक के हैदर अली ने अपने राज्य के समय गाय काटने वाले के हाथ काट देने का नियम बनाया था |[vii]
अकबर तथा जहाँगीर ने भी इनके समय में कुछ जगहों पर गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाया था [viii] तथा बहादुर शाह जफ़र ने भी इनके कब्जे वाले इलाकों में १८५७ में गौ हत्या निषेध के आदेश दिए थे |[ix]
मराठा साम्राज्य के समय भी गौ हत्या पर इनके साम्राज्य में पूर्णतः प्रतिबन्ध था तथा गाय काटने वालों को कठोर सजा का नियम था जो पेशवा के समय तक भी कायम था |
आज भी भारत में कई गौशालाएं हैं जहाँ जैविक कृषि गाय के गोबर तथा गो मूत्र से की जा रही है जिससे लोगों को जहरीले कीटनाशक डले हुए अनाज से मुक्ति मिल रही है
यही नहीं आज़ादी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी से बने कारतूस ना चलाने को लेकर ही किया गया था | तथा महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय आदि भी आजादी के आन्दोलन में लोगों से यही कहते थे के स्वतंत्रता मिलने पर सबसे पहला कार्य गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने का करेंगे |[x]मगर अफ़सोस आज़ादी के बाद गौ कतलखानो की संख्या ३६००० तक पहुँच गयी | यही नहीं भारत के लोग खुद अंग्रेजी शिक्षा पढ़कर तथा वामपंथ के प्रभाव में आकर गाय काटने और गाय खाने की बात करने लगे |
आज भी भारत में कई गौशालाएं हैं जहाँ जैविक कृषि गाय के गोबर तथा गो मूत्र से की जा रही है जिससे लोगों को जहरीले कीटनाशक डले हुए अनाज से मुक्ति मिल रही है तथा किसानो को ट्रक्टर तथा डीजल पेट्रोल का खर्चा भी नहीं उठाना पड रहा क्योंकि बैल खेत जोतने में काम आ जाते हैं | महाराष्ट्र के कोल्हापुर के शेल्केवाडी [xi] गाँव में हर घर में गाय के गोबर से बनने वाली गोबर गैस से सारा खाना पकाया जाता है अतः यह गाँव एल.पी.जी. से भी मुक्त हो गया है | यही नहीं गाय के गोबर से बनी गैस को सिलिंडर में भरके लोग गाड़ियाँ तक चलाने की तकनीक आज विकसित कर चुके हैं |[xii]
इन सब विशेषताओं के साथ साथ प्राचीन आयुर्वेद में गाय के पंचगव्य तथा गौमूत्र से कई बीमारियाँ ठीक करने का वर्णन है | अतः देसी गाय के गौमूत्र तथा पंचगव्य से आज पथमेड़ा , जड़खोर ,गौ विज्ञानं अनुसंधान केंद्र नागपूर ,पतंजलि , आर्ट ऑफ़ लिविंग तथा कई गौशालाएं एवं आयुर्वेद और सिद्धा के आचार्य कई तरह की दवाये बना रहे हैं तथा इससे बहुत से बड़े एवं असाध्य रोगों का इलाज भी इन्होने कर के दिखाया है |[xiii] पथमेड़ा ,महर्षि वाङ्ग्भट गौशाला वालाजाबाद , रामदेव बाबा तथा गायत्री परिवार के गाय के कई उत्पादों एवं औषधियों पर बहुत से शोध भी हुए हैं जिनके आधार पर वैज्ञानिक तौर पर यह कहा जा सकता है के गौ मूत्र तथा पंचगव्य एक प्रमाणिक औषधि है |[xiv] इसके अलावा गाय के घी से किये गए अग्निहोत्र यज्ञ से वायु से जहरीली गैस हटाकर उसे शुद्ध करने के प्रयोग तो जापान के हिरोशिमा, नागासाकी तथा भोपाल में गैस त्रासदी के बाद किये ही जा चुके हैं | यज्ञ का अपना एक पूरा विज्ञान हिन्दू धर्म के कई शास्त्रों में भरा पड़ा है |
इस पूरे लेख में मैंने गाय में ३३ कोटि देवी देवता का वास तथा गाय के धार्मिक पक्ष की तो बात ही नहीं की है क्योंकि कुछ अंग्रेजी तथा विज्ञान पढ़े हुए लोगों को धर्म की बाते समझ नहीं आएँगी | मगर यदि सिर्फ ऐतिहासिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक पक्ष भी देखा जाए तो ‘गाय’ भारत ही नहीं दुनिया के लिए बहुत उपयोगी जीव सिद्ध होती है | शायद इसीलिए अमेरिका गौ मूत्र पर पेटेंट करवा रहा है तथा ब्राजील गिर गाय की नस्ल को बढ़ा रहा है | पर भारत के अंग्रेजी तथा वामपंथी दिमाग के लोगों को यदि सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना है तो इनके लिए कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि –
‘उस व्यक्ति को जगाया जा सकता है जो नींद में हो मगर जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे नहीं जगाया जा सकता’


पैकेजिंग दूध की सच्चाई

##पैकेजिंग दूध की सच्चाई##
आज हम सब लोग सुबह उठते ही चाय
की चुस्की लगाते है। हमने पैकेजिंग दूध
की सच्चाई अपने दूध के बारे में
नहीं सोचा। १ बार अपनी दूध
की थैली भी देख लीजिए। आज हम में से
ज्यादातर लोग अमूल गोल्ड या फिर
उसके समकक्ष कोई और दूध पिते होगे।
ये दूध खून में कोलेस्ट्रोल
की मात्रा बढाता है जिससे हमारे
शरीर में हृदय सम्बंधित
बीमारी बढती है। कम आयु में भी हार्ट
एटेक होना आज कल हम देख ही रहे है ना।
कही ये
हमारी लापरवाही का परिणाम
तो नहीं है ना? चलो अब जानते है कैसे ये
दूध आपके स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन
रहा है।
जरा ध्यान से अपनी दूध
की थैली देखना। उसके ऊपर कुछ इस तरह
लिखा मिलेगा।
Fat 6.0 % minimum
SNF 9.0 % minimum
500 ml का 9% के हिसाब से १ थैली में
SNF की मात्रा 45 gm होगी।
चलो अब जानते है ये SNF किस
बला का नाम है।
SNF मतलब Saturated natural fat.
हमारे शरीर में कई तरह की चर्बी या फेट
पायी जाती है जिसमे से कोई शरीर के
लिए लाभदायी है तो कोई शरीर के
लिए नुकसानदेह। ये SNF हमारे शरीर
को बहोत नुकसान पहुचाता है।
American Heart Association
की गाईडलाइन के अनुसार स्वस्थ रहने के
लिए हमारे आहार में SNF की दैनिक
मात्रा १६ ग्राम से
ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इससे
ज्यादा मात्रा में SNF का सेवन करने से
कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढती है और
ब्लडप्रेशर डायाबिटीस जैसी भयानक
बीमारियाँ भी होती है। यही बात
WHO ने भी अपनी रिपोर्ट में बताई है।
इस बात की पुष्टि के लिए आप निचे
दी गई लिंक देख सकते है।
http://www.heart.org/HEARTORG/
Conditions/Cholesterol/
PreventionTreatmentofHighCholester
ol/Know-Your-
Fats_UCM_305628_Article.jsp#
mainContent
आज पूरी दुनियाभर में कम SNF वाले
आहार के लिए
जागरूकता बढती जा रही है और हम सब
लोग अँधेरे में जी रहे है। ज्यादा SNF
वाला दूध ज्यादा पैसा देकर खरीद रहे है
और बीमारी को पैसो से आमंत्रित कर
रहे है। इसके उपरांत पैकेजिंग वाले दूध में
जर्सी, भैंस, बकरी, भेड़ सभी का दूध
मिलके हमारे पास पहूचता है।
कभी ज्यादा गाढ़ा दिखाने के लिए
उसमे विदेशी नस्ल के प्राणी के दूध
का पाउदर भी मिलाके उसे और
खतरनाक बना देते है।
कभी यूरिया भी डाल तो भी हमे
कहा पता चलेगा।
क्या यही हमारी अक्लमंदी है की हम
ज्यादा पैसा खर्च करके हार्ट एटेक
जैसी बीमारी को बुलाये और फिर
उसको ठीक करने के लिए और तगड़े पैसे खर्च
करके हार्ट की सर्जरी करवाए?
क्या इससे अच्छा ये नहीं होगा की हम
पहेले से ही पैसा हमारी गायमाता के
दूध के पीछे खर्च करे और हमारे स्वास्थ्य
को तरोताजा रखे?
आज ना जाने कहा से गोल्ड के नाम पे
ज्यादा पैसा खर्च करके हम
ज्यादा महँगा दूध पिने की बात गर्व से
करते है लेकिन गोल्ड सही माइने में हमे
बहुत महँगा पड सकता है। अगर “गोल्ड”
ही खाना हे तो गौमाता का दूध
पिए। इसमें खरा सोना है जिसकी वजह
से तो गायमाता का दूध
हल्का पिला रहता है। वैज्ञानिको ने
संशोधन में ये बात सिद्ध की है
की हमारी गायमाता के दूध में
molecule of auram
यानी की सुवर्णक्षार पाया जाता है
जो की खरा सोना है। अगर हमारे
बच्चों की बुद्धिशक्ति बढ़ानी है तो हमें
बूस्ट बोर्नविटा हॉर्लिक्स छोडके गाय
का दूध पिलाना शुरू करना पड़ेगा।
गायमाता का दूध के तो अनगिनत
फायदे है जो हम समय समय पर देखते रहेंगे।
आओ हम सब मिलके इस बात
को लोगो तक पहुचाये। स्वस्थ
बुद्धिसंपन्न समाज के निर्माण
की शुरुआत हमे अपने आप से
ही करनी होगी। चलो हम सब निर्धार
करे के हमारे भोजन में से पैकेजिंग दूध
को छोडकर गायमाता हा दूध
ही इस्तेमाल करे। दूध की जरूरत
पड़ेगी तो गायमाता की भी जरुरत
पड़ेगी और कतलखाने जाती हुई
हमारी माँ बचेगी और दूध के रूप में हम
सबके घर पहुचेगी।
।। जय गौमाता ।।

एड्स से बचाएगा गाय का दूध!

एड्स से बचाएगा गाय का दूध!

गाय के दूध को बहुत पौष्टिक होता है. भारत में सदियों से इसके फायदों की बात की जाती रही है. यहां तो नवजात बच्चों को भी गाय का दूध पिलाया जाता है।
अब पता चला है कि यह एचआईवी वायरस से भी निपट सकता है.गाय के दूध पर यह रिसर्च ऑस्ट्रेलिया में की गई है. रिसर्च के नतीजे आने के बाद कहा गया है कि गाय के दूध से एचआईवी वायरस पर असर करने वाली क्रीम या जेल बनाया जा सकता है.
गाय के दूध में ऐंटीबॉडी यानी रोग प्रतिरक्षी होते हैं
दरअसल गाय के दूध में ऐंटीबॉडी यानी रोग प्रतिरक्षी होते हैं. ये शरीर के इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षी तंत्र को स्वस्थ रखने और उसे मजबूत बनाने का काम करते हैं. जब एचआईवी वायरस शरीर पर हमला करता है तो वह प्रतिरक्षी तंत्र को कमजोर करने लगता है. गाय के दूध में मौजूद ऐंटीबॉडी इस से लड़ सकते हैं. ऐंटीबॉडी एक तरह का प्रोटीन होता है जो बीमारियों से लड़ने का काम करता है.
संक्रमण का खतरा नहीं 
मेलबर्न यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों ने गर्भवती गायों पर शोध किया तो यह बात सामने आई. गर्भावस्था के आखिरी महीनों में ही दूध बनने लगता है. इसे फर्स्ट मिल्क या कोलोस्ट्रम कहा जाता है. रिसर्च के लिए इसी का इस्तेमाल किया गया. रिसर्च टीम के अध्यक्ष प्रोफेसर डामियान पर्सल बताते हैं कि कोलोस्ट्रम में भारी मात्रा में एंटीबॉडी मौजूद होते हैं. बाद में धीरे धीरे यह मात्रा कम होती रहती है, “यदि जन्म के बाद बछड़े को दूध ना मिले तो उसे बीमार होने का खतरा रहता है. कई बार तो संक्रमण के कारण उसकी जान भी जा सकती है.”
एचआईवी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह वायरस कई तरह का होता है. पर्सल बताते हैं, “हर व्यक्ति में एचआईवी के उतने ही अलग प्रकार हो सकते हैं जितने इस पृथ्वी पर इंसान हैं. कम ही लोगों में यह क्षमता होती है कि उनका शरीर वायरस के प्रकार को समझ पाए और उसके खिलाफ ऐंटीबॉडी बना सके. लेकिन गाय ऐसा कर सकती हैं.” यही वजह है कि गाय को एचआईवी संक्रमण का खतरा नहीं होता.
सस्ती दवा
वैज्ञानिक अब चाह रहे हैं कि दवा बनने वाली कंपनी के साथ मिल कर संक्रमण को रोकने के लिए दवा तैयार की जाए. ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने इसके लिए बायोटेक्नॉलॉजी कंपनी इम्यूरोन से बात भी शुरू कर दी है. इन दवाओं को क्रीम या जैल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस बारे में भी चर्चा चल रही है कि महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक रिंग में इसका इस्तेमाल किया जाए ताकि एंटीबॉडी लगातार वायरस के खतरा से बचा सकें.
गाय के दूध से इन दवाओं का बनना इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि इनकी कीमत काफी कम रहेगी. पर्सल की टीम की मारित क्रामस्की बताती हैं, “गाय के दूध के इस्तेमाल से हम बड़ी संख्या में एंटीबॉडी तैयार कर सकते हैं और इस पर खर्च भी बहुत कम आएगा. हम उम्मीद कर रहे हैं कि अंत में हमारे पास एक ऐसा प्रॉडक्ट होगा जिसकी कीमत ज्यादा नहीं होगी.”
दुनिया भर में करीब साढ़े तीन करोड़ लोग एचआईवी से संक्रमित हैं. इस रिसर्च के बाद उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही एचआईवी की रोकथाम के लिए टीका भी तैयार किया जा सकेगा.

अनुसंधान/ Research


GIRIVIHAR Cancer Hospital 

http://giriviharcancerhospital.org/



GIRIVIHAR Cancer Hospital has been established for the Treatment of Cancer patients based on PANCHGAVYA. Inspirational force for this project has come from SHRI KESHARICHAND MEHTA from MALEGAON, MAHARSHTRA. He is the President of AKHIL BHARTIYA KRUSHI GAUSEVA SANGHA. He has written a book on the benefits of Cow Urine and Dung. According to him, Consumption of Chemical/fertilizer/Pesticide impregnated Cereals, fruits and vegetables are the main causes leading to incurable diseases like Cancer and Kidney-related diseases, however these can be treated with help of cow urine & Dung.

At GIRIVIHAR cancer Hospital, a novel concept of “PANCHGAVYA” is being implemented in the treatment of Cancer Patients. 

GIRIVIHAR Cancer Hospital has been established for the Treatment of Cancer patients based on PANCHGAVYA. Inspirational force for this project has come from SHRI KESHARICHAND MEHTA from MALEGAON, MAHARSHTRA. He is the President of AKHIL BHARTIYA KRUSHI GAUSEVA SANGHA. He has written a book on the benefits of Cow Urine and Dung. According to him, Consumption of Chemical/fertilizer/Pesticide impregnated Cereals, fruits and vegetables are the main causes leading to incurable diseases like Cancer and Kidney-related diseases, however these can be treated with help of cow urine & Dung.

At GIRIVIHAR cancer Hospital, a novel concept of “PANCHGAVYA” is being implemented in the treatment of Cancer Patients.

PANCHGAVYA or COWPATHY is an Indian therapeutic science which makes use of five important substances viz. Cow’s Urine, Dung, Milk, Curd and Ghee either singly or in combination with each other or in combination with other herbs as medicinal components in the treatment of cancer and several diseases.
It is believed that these five substances possess medicinal properties against many disorders and strengthen our immune system. In certain parts of Tamilnadu State (South India) especially on the day after Diwali, Brahmin Communities take one tbsp of PANCHGAVYA to ensure immunity for the whole year.
PANCHGAVYA is a system of medicine like Allopathy, Homeopathy and Naturopathy. As per the ancient AYURVEDIC literature there are number of pharmacological applications derived from these five substances.
PANCHGAVYA is also abundantly used in the treatment of arthritis, renal disorders, diabetes, acidity, asthma and gastrointestinal track disorders. PANCHGAVYA remedies are considered as potent anti-cancer and anti-HIV agents.
Cow Urine is a very important and a major constituent of PANCHGAVYA due to its antibiotic, antifungal and antiviral properties.
In AYURVEDA, it is mentioned that Cow Urine PANCHGAVYA is a great elixir, it enhances longevity and provides mental and physical strength to heart. It balances bile, mucous and air (TRI-DOSH) and thus cures the diseases.
In fact, Cow Urine is being used in many places all over the world for its antibiotic properties in the control of bacterial infection and for fight against cancer.
PANCHGAVYA is also used in agricultural applications in the form of fertilizers, vermin compost and bio pesticides thereby protecting the food grains from chemical fertilizers and pesticides.

PANCHGAYAIt is a holistic approach in the treatment of incurable diseases like cancer and involves treatment medicine,possitive attitude and spirituality thus to get the maximum benifit of PANCHGAVY. it is essential that this SHLOKA from MAHABHARAT epic be chanted 3 times before consuming PANCHGAVYA.




Cow Urine Distillate (‘Go-mutra’) Patent

Use of bioactive fraction from cow urine distillate (‘Go-mutra’) as a bio-enhancer of anti-infective, anti-cancer agents and nutrients
US 20020164378 A1

ABSTRACT
The invention relates to a novel pharmaceutical composition comprising an effective amount of bio-active fraction from cow urine distillate as a bioavailability facilitator and pharmaceutically acceptable additives selected from anticancer compounds, antibiotics, drugs, therapeutic and nutraceutic agents, ions and similar molecules which are targeted to the living systems.